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________________ TA ४२७. लक्ष्मीप्रभ है। जैन मुनि साहित्य धर्मदर्शन के अतिरिक्त जंत्र-मंत्र, वैद्यक, शकुन स्वप्न आदि विषयों पर भी पर्याप्त रचनायें करते थे। यह उसी प्रकार की एक वैद्यक विषयक रचना है । ____लक्ष्मीकुशल की एक छोटी रचना 'नेमिनाथ गहूँली' भी प्राप्त है किन्तु यह रचना जिनकुशल शिष्य लक्ष्मीकुशल की है या किसी अन्य लक्ष्मीकुशल की- यह निर्णय कर पाना मुश्किल है। यदि यह उन्हीं की रचना हो तो वे आयुर्वेद के साथ ही सरस साहित्यकार भी रहे होंगे। नेमिनाथ गहँली १२ कडी की छोटी रचना अवश्य है पर इसका वर्ण्य विषय इतना मार्मिक और लोकप्रिय है कि विषय का चयनकर्ता अवश्य कविहृदय रहा होगा। इसकी कुछ पंक्तियाँ नमूने के रूप में उद्धृत की जा रही हैंआदि -द्वारका नयरी सुन्दर वरु जी तंदुकवण अभिराम हो गुणवंती गुहंली करें फाग मां तारु जी। नेम जिणंद समोसर्या वा० वणपालक दीइं वधार हो गु० । श्री कृष्ण अग्रमहेषी आठ सुं वा, वंदन पडह बजाय हो गु० । अंत-लक्ष्मीकुशल शिवपद लहें वा, विनय सफल फली आसा हो, गुणवंती गहुली करे फागमां तारुजी।' लक्ष्मीप्रभ -आप नाहटावंशीय कनकसोम के शिष्य थे। आपने सं० १६७०-७४ के बीच १५ ढालों में २९१ गाथा की एक रचना 'पुण्यसार चौपइ' नाम से लिखी जिसकी प्रति मूनि जिनविजय जी के संग्रह में है । इसके अतिरिक्त आपने सं० १६६४ में धर्मगीत (गाथा ८७), सं० १६७६ में अमरदत्त मित्रानंदरास, सं० १६७७ में मृगापुत्र संधि (गाथा ९५) मुलतान और चौबीसजिनस्तवन नामक ग्रंथ भी लिखे । ___ धर्मगीत का अपरनाम 'यतिधर्मगीत' भी है । यह रचना लक्ष्मीप्रभ की नहीं बल्कि इनके गुरुभाई कनकप्रभ की है। जैन गुर्जर कविओ के द्वितीय संस्करण के संपादक का विचार है कि संभवतः 'अमरदत्त १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ३८२ (द्वितीय संस्करण) २. अगरचन्द नाहटा-परंपरा पृ० ७३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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