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________________ लखपत ४२५ आदि- पढम पणमिय पढम पणमिय तित्थ चउवीस । हंसासणि गयगमणि वागवाणि सरसति नमेवि, करि पुस्तक वीण वर कलस चिन्ह सासणदेवि । तासु तणउ सुपसाउ लहि, हीय इ हरष धरेवि; ऋषिदत्ता सती तणउ, चरित कहिसुसंखेवि। रचनाकाल-- सापिणि सरसति सूप्रसादइ, अ प्रबंध रच्यउ भलउ, संवत सोल छबीस वछरि, मास आसूगुण निलउ। गुरु परम्परा के अन्तर्गत कवि खरतरगच्छीय जिनचंद्रसूरि और भावहर्ष की स्तुति करके लिखता है - गुण निलउ सुहगुरु सफल सुरतरु, संघ शाखा विस्तरइ, तसु सीस मुनि रङ्गसार जंपइ, जे प्रबंध इसी परइ । अन्त में कवि कहता है जे भविय भणस्यइ अनइ सुणस्यइ, ताह घरि हवइ सुख घणा। नव निधि ऋद्धि समृद्धि थापइ, सदा वृद्धि वधामणा ।' रंगसार खरतरगच्छ की भावहर्षी शाखा के अच्छे कवियों में थे। लखपत-ये सिन्धु देश के सामुहीपुरवासी कूकड़चोपड़ा गोत्रीय तेजसी के पुत्र थे। इन्होंने सं० १६९१ में बहुरा अमरसिंह के आग्रह पर 'त्रिलोकसून्दरी मंगलकलश चौपइ' नामक काव्य की रचना की। इसका केवल अन्तिम पत्र तपागच्छ भण्डार जैसलमेर में उपलब्ध है। मूल प्रति १२ पृष्ठों की थी। प्रारम्भिक ११ पृष्ठ अप्राप्त होने के कारण इसके अधिकांश विवरण अनुपलब्ध हैं। इसी प्रकार आपकी रचना 'मृगांकलेखारास' (सं० १६९४) की प्रति के भी केवल अंतिम दो पत्र उसी भण्डार में उपलब्ध हुए हैं, शेष २३ पृष्ठ लुप्त हो गये हैं अतः इसका भी विवरण-उद्धरण प्राप्त नहीं हो सका है। १. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० १५३-५४ (द्वितीय संस्करण) और भाग ३ पृ० ७१९-२० (प्रथम संस्करण) २. अगरचन्द नाहटा-परंपरा पृ० ८६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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