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________________ ४.२ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास अंतिम पंक्तियाँ निम्नाङ्कित हैं रूपचंद जिन वीनवै, हौं चरननु कोदास, मैं इय लोक सुहावनो, विरच्यो किंचित रास ।' खटोलना गीत-इसमें १३ पद्य हैं, सभी अध्यात्मभाव सम्पन्न हैं। इसके अतिरिक्त 'सोलह स्वप्न फल' और 'जिनस्तुति' नामक रचनायें भी प्राप्त हैं। इससे प्रकट होता है कि आप एक समर्थ कवि और जैन विद्या के मार्मिक ज्ञानी थे। आपकी कविताओं के सीधे-सादे भाव पाठकों को प्रभावित करते हैं। आपके गीतों के कई संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं जैसे परमार्थ जकड़ी संग्रह (प्रकाशक जैन ग्रंथ रत्नाकर कार्यालय, बम्बई) में इनके छह गीत हैं और 'वृहज्जिनवाणी संग्रह' (सं० पन्नालाल बाकलीवाल, किसननगर) में इनके दस गीत संकलित हैं । इनसे इनकी रचनाओं की लोकप्रियता का अनुमान होता है । रंगकुशल-आप खरतरगच्छीय कनकसोम के शिष्य थे । आपकी अमरसेन वयरसंधि सं० १६४४ सांगानेर, स्थूलिभद्र रास (पद्य ४८) सं० १६४४, होली गीत सं० १६६८ बीकानेर, अंतरङ्गफाग और महाबीर सत्ताइस भव सं० १६७० आदि रचनायें प्राप्त हैं। इनकी प्रथमकृति 'समरसेन वयर प्रबन्ध' आषाण शुक्ल सं० १६४४ में रची गयी थी। इसका रचनाकाल कवि ने इन पंक्तियों में दिया है संवत सोल बरसि चमालइ, अह प्रबंध रच्यउ सुरसालइ । मासि असाढ़इ पखि उजवालइ, पुरि संग्राम नगर सुविसालइ। आदि-श्री जिनमुखवासिनि समरिज्जइ, सद्गुरु चरण पंकज पणमिज्जइ । पूजादान तणा फल गिज्जइ, अमरसेन वयरसेन चरिय भणिज्जइ । १. डॉ० कस्तूरचन्द कासलीवाल-प्रशस्ति संग्रह भाग १ प्रस्तावना पृ० सं० ८१ भौर पृ० २३५ २. श्री अगर वन्द नाहटा-परंपरा पृ० ७३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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