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पांडे रूपचंद
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यह काव्य 'दोहराशतक' नाम से जिस गुटके में मिला था उसे बनारसीदास के मित्र कुंवरपाल ने लिखा था।
गीत परमार्थी -- यह रचना चेतन (जीव) को सम्बोधित करके लिखी गई है । सद्गुरु अमृतमय हितकारी वचनों से चेतन को समझाते हैं, किन्तु वह नहीं समझता, कवि कहता है
चेतन अचरज भारी, यह मेरे जिअ आवै। अमृत वचनहितकारी, सद्गुरु तुम्हहि पढावै । सद्गुरु तुम्हहि पढ़ावै चितदै, अरु तुमहू हो ज्ञानी,
तबहू तुमहि न बयौहू आवै, चेतन तत्व कहानी। चेतनतत्त्व का ज्ञान समझाने पर भी जीव नहीं समझता पर विषयों को बिना बताये ही जीव सीख लेता है, यथा
विषयनि चतुराई कहिये, को सरि कर तुम्हारी,
बिनु गुरु फुरत कुविद्या कैसे, चेतन अचरज भारी। मंगल गीत प्रबन्ध-अनेक स्थानों से प्रकाशित हो चुका है। भारतीय ज्ञानपीठ, वाराणसी से 'ज्ञानपीठ पूजांजलि संग्रह' (सन् १९५७) में पृ० ९४ से १०४ पर भी छपा है। इसमें तीर्थङ्कर के पंचकल्याणकों - गर्भ, जन्म, दीक्षा, ज्ञान और मोक्ष को लेकर भक्ति भावपूर्ण पदों की रचना की गई है। भगवान के जन्मोत्सव का वर्णन इन पंक्तियों में देखिये
दलदलहिं अपछर नटहिं नवरस हावभाव सुहावने; मणि कनक किंकिण वर विचित्र सूभ्रमर मंडप सोहये ।
घन घंट चंवर धुजा पताका देखि त्रिभुवन मोहये । लघुमंगल-इसमें केवल पाँच पद्य हैं। प्रत्येक पद्य में छह पंक्तियां हैं।
नेमिनाथ रासा-नेमिनाथ के मनोहारी चरित्र पर आधारित एक सरस रचना है। इसका प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है
पणविवि पंच परम गुरु मण वचकाय विसुद्धि, नेमिनाथ गुण गावउ उपजे निर्मल बुद्धि । सोरठ देस सुहावनो पुहमी पर परसिद्ध, रस गोरस परिपूरन धन जन कनक समिद्ध ।
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