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________________ ४१६ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास वहां के राजा विमल बुध ने इन दोनों का सम्मान किया। विवेक का सुमति से विवाह किया। उसने मुनि-प्रवचन और जिन दर्शन से शान्ति लाभ किया, तीर्थङ्कर के आशीर्वाद से वह पुण्य नगरी का राजा बन गया। उधर मदन ने मोह राजा के आदेशानुसार विवेक पर आक्रमण किया किन्तु पराजित हआ। अन्त में विवेक ने संयमश्री से विवाह किया और सबको सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देने लगा। ग्रन्थ के अन्त में कवि ने अपनी गुरु परंपरा लिखी है। यह रचना सं० १६३६ ज्येष्ठ कृष्ण १३ शनिवार को तक्षकगढ़ टोडारामसिंह के पार्श्वनाथ मंदिर में लिखी गई थी। इसका प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है परमहंस अती गुण निलो, जो वंदै बहु भाइ, तीह को परगाह वरणऊं, सुनहु भविक मन लाइ ।' अन्तिम पद्य देखिये जो लग धरती सुभ आकाश, तो लग तीष्टौ टोडो वास । राजा परजा तिष्टौ चंग, जिनशासन को धर्म अभंग ।२ आगे कुछ लघुकृतियों का अति संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है। निर्दोष सप्तमी व्रतकथा में वाराणसी के सेठ लक्ष्मीदास और उनकी पत्नी लक्ष्मीमति के द्वारा निष्ठा पूर्वक इस व्रत का पालन करने तथा इसके फलस्वरूप सर्प का हार बन जाने आदि अद्भत घटना क्रमों का वर्णन है । पूरी कथा ५९ पद्यों में कही गई है - 'पञ्च परम गुरु जयमाल' (२१ पद्य) इस स्तुति परक रचना में पूजा, दान, धर्म आदि का महत्व बखाना गया है । यथा पांच परम गुरु वंदिस्यां सारद प्रणमी पाये जी। आठ द्रवि पूजा रच्यो, सद्गुरु तणौ पसाये जी । जिनलाडू गीत- एक रूपक गीत है जिसमें निर्वाण के लिए लाडू का रूपक बनाकर मानव को मुक्ति की प्रेरणा दी गई है । चारित्र रूपी १. डॉ० कस्तूरचन्द कासलीवाल-महाकवि ब्रह्मरायमल्ल एवं त्रिभुवनकीति पृ० १९८-२०० २. बही, पृ० १९८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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