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ब्रह्मरायमल्ल
૪૧૭ सुन्दर लाडू खाने से सब कुछ सम्भव होता है। यह रचना सं० १६३० के आस-पास सांभर में की गई थी।
चन्द्रगुप्त के सोलह स्वप्न (२५ पद्य) यह प्रारम्भिक काल की ही रचना प्रतीत होती है। स्वप्नों का जैनपुराणों में बड़ा महत्व है। तीर्थङ्कर के गर्भ में आने से पूर्व माता को १६ स्वप्न आते हैं। इसमें चन्द्रगुप्त के १६ स्वप्नों का वर्णन है। उसने अपने गुरु भद्रबाहु से स्वप्नों का फल पूछा तो उन्होंने कहा कि बारह फण वाला सर्प का फल है, बारह वर्ष का दुकाल और कूड़े में उगते हुए कमल का फल है कि संयम धर्म अब केवल वैश्य जाति में रहेगा और ब्राह्मण क्षत्रिय भ्रष्ट होंगे। इसी प्रकार उगते हुए चन्द्रमा में छिद्र का फल है कि जिनशासन अनेक भागों में बंट जायेगा। इत्यादि -- इन फलों को सुनकर सम्राट को वैराग्य हुआ और उसने संयम व्रत धारण किया।
जंबू स्वामी चौपइ-में जम्बू स्वामी का पावन प्रेरणादायक चरित्र-चित्रित है । नेमिनिर्वाण में नेमिनाथ का स्तवन है। इसी प्रकार 'चिन्तामणि जयमाल' भी एक स्तवन प्रधान कृति है। ये सभी लघुरचनायें सामान्य स्तर की हैं। काव्य की दृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण नहीं हैं किन्त इनकी आठ बड़ी रास संज्ञक रचनायें इनके काव्य प्रतिभा की परिचायक हैं तथा काफी लोकप्रिय रही हैं। इनकी अनेक हस्तप्रतियाँ नाना शास्त्रभंडारों में सूलभ हैं।
भाषा में ढूढाड़ी विशेषतायें जैसे बोलचाल की स्वाभाविक माधुरी और सरलता आदि पाई जाती हैं। शब्दों के राजस्थानी रूप जैसे उज्जयिनी का उजेणी, दहेज का डाइजो, जिनालय का जिणालं, विधवा का रांड, वणिक का वाण्यां, बहिन का वहण आदि प्रचुर रूप से मिलता है। 'से' कारक के लिए स्यौं भी अधिक प्रयुक्त हुआ है। लुगाई, टीकना आदि ठेठ प्रयोग भी मिलते हैं । ____ इनकी कुछ रचनाओं,जैसे श्रीपाल रास, हनुमंतकथा, प्रद्युम्न रास, सुदर्शन रास की कथा पौराणिक है और कुछ जैसे जंबूस्वामी और नेमिरास की कथा ऐतिहासिक है तथा परमहंस चौपइ की कथा आध्यात्मिक है। इनमें भक्ति, शृगार और वीर रसों के साथ प्रकृतिवर्णन भी मनोरम ढंग से किया गया है। ये लोकप्रिय कवि हैं क्योंकि प्रायः रचनायें लोकरुचि और भावानुसार रची गई हैं। ये घुमक्कड़ थे और अच्छे संगीतज्ञ भी थे। अतः इनकी रचनाओं में लोकतत्व और संगीत
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