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ब्रह्मरायमल्ल
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अंतिम पद्य देखिये
मूलसंघ शारद शुभ गच्छि, छोड़ी चार कषाय निरमधि, अनतकीर्तिमुनि गुणहनिधान, ता सुत नै सिख कीयो बखाण । ब्रह्मरायमल थोड़ी बुधि, आखर पद की न लहै सुधि ।
जैसी मति दीन औकास, व्रत पंचमी को कीयो परकाश ।' श्रुत पंचमी के माहात्म्य के दृष्टान्त स्वरूप भविष्यदत्त की कथा उल्लिखित है । यथा
व्रत पंचमीजै को करै, केवल ऊसमतहिन फुरै।
जै याह कथा सुण दै कान, काललहवि पावै निर्वाण । . परमहंस चौपइ-यह इनकी अन्तिम महत्त्वपूर्ण रचना है। यह एक रूपक काव्य है । इसमें परमहंस आत्मा नायक है । जीव के स्वरूप वर्णन से काव्य का प्रारम्भ हआ है। माया ने परमहंस आत्मा की पटरानी बनकर उसकी पाँचों इन्द्रियों को वश में कर लिया। आगे मन का राजा बनना, प्रवृत्ति-निवृत्ति से विवाह करना, प्रवृत्ति से पुत्र मोह और निवृत्ति से पुत्र विवेक का उत्पन्न होना वर्णित है। माया ने विवेक को बन्दी बनवा कर मोह को उत्तराधिकारी बनवाया और वह राज्य करने लगा। कवि उसके राज्य का हाल लिखता है
पुरी अज्ञान कोट चहुंपास, त्रिसना खाई सोभे तास । च्यारुं गति दरवाजा वण्यां, वीस तहां विष मन घंणा।
मिथ्या दरसन मंत्री तास, सेवक आठ करम को वास ।' नगर में अनैतिक व्यसनों की चौकड़ी जमने लगी। निवृत्ति और विवेक को देश निकाला हो गया। वे जिनशासित सुन्दर देश में पहुँचे जहाँ
तिहाँ भलो दीस संजोग, पानी छाण्या पीव सहुलोग। मुनिवर वह पाले आचार, पाप पुण्य को करै विचार ।
१. डॉ० कस्तूरचन्द कासलीवाल-प्रशस्ति संग्रह पृ० २४४ २. वही, भ० ब्रह्मरायमल्ल और महाकवि त्रिभुवनकीर्ति पृ० ५९-६१
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