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________________ ब्रह्मरायमल्ल ४११ इसका प्रथम छन्द हो तीर्थकर वंधों जगिनाहो, हो जिन्ह समिरण मनिहोइ उछाहो । हूवा अब छै होइस्य जी, हो त्याह को ज्ञान रह्यो भरि पूरे । गुण छियल सोभै भलाजी, हो दोष अट्ठारह की या दूरेज रास भणी परदवणकोजी।' लेकिन प्रशस्तिसंग्रह में यह प्रथम छंद निम्न रूप में दिया गया है तिह कारण रहै घट पूरि गुण छीयालिस सोभभलाजी। दोष अठारह किया दूर तो रास भण्यो परघमनकोजी ।' इसका अन्तिम छन्द देखिये हो कड़वा एक सौ अधिक पचाणू, हो रास रहस परदमन बखाण। भावभेद जुवाजी हो, जैसी मति दीन्हौं अवकासो, पण्डित कोई मत हंसौजी, हो जैसी मति कीन्हों परगासो, रासभणी परदवण को जी। प्रद्युम्न रास या चरित्र का डा० कस्तूरचंद कासलीवाल ने संपादन-प्रकाशन किया है। इसकी भूमिका में डा० सत्येन्द्र ने सधारूकृत प्रद्युम्नरास को सूर पूर्व ब्रज भाषा का प्रथम महाकाव्य कहा है। ___सुदर्शन रास- इसमें सच्चरित्रता के लिए प्रसिद्ध सेठ सुदर्शन की कथा वर्णित है। अकबर के शासनकाल में सं० १६२९ वैशाख शुक्ल सप्तमी को धौलपुर में यह रास रचा गया। २०१ पद्यों में निर्मित यह एक कथा प्रधान रास है । सुदर्शनसेठ से कपिला ब्राह्मणी और रानी अभया दोनों ने संभोग के लिए आग्रह किया किन्तु सेठ संयम पर अविचल डटा रहा। अन्त में देवों ने सेठ की मदद की और सभी आपदाओं से मुक्त होकर वह अपने घर जाकर आनन्द पूर्वक रहने लगा। १. डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल- ब्रह्मरायमल्ल और त्रिभुवनकीर्ति पृ० ३३ २. वही, प्रशस्ति संग्रह पृ० २३९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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