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मरु गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास नायक और सुमति को उसकी नायिका बनाकर प्रेम के वियोग पक्ष का मार्मिक वर्णन किया है यथा
_ 'मैं विरहिन पिय के आधीन, त्यों तलफों ज्यों जल बिन मीन।' । कभी-कभी वह निर्गुण संतों की भाषा में आध्यात्मिक मिलन की अद्वैतावस्था का भी वर्णन करते हैं यथा :
'होहुँ मगन मैं दरसन पाय, ज्यों दरिया में बंद समाय । या, पिय को मिलों अपनपो खोय, ओला गल पाणी ज्यों होय । या, पिय मोरे घट में मैं पिय मांहि, जल तरंग ज्यो दुविधा नाहि ।
पिय मो करता मैं करतूति, पिय ज्ञानी मैं ज्ञान विभूति ।'
कवि ने सुमति को राधा मानकर लिखा है :धाम की खबरदार राम की रमनहार,
राधा रस पंथनि में ग्रन्थनि में गाई है। सन्तन की मानी निरबानी रूप की निसानी,
यातै सुबुद्धि रानी राधिका कहाई है ॥२ प्रेम के मिलन या संयोग पक्ष का भी वर्णन किया गया है, यथा'देखो मेरी सखी ये आज चेतन घर आवे । काल अनादि फिरयो परवश ही अब निज सुधि ही चितावै ॥३ आध्यात्मिक विवाह या विवाहला (इन्हें विवाहलउ, विवाहलौ भी कहा गया है) नाम की अनेक रचनायें उपलब्ध हैं जिनमें आध्यात्मिक मिलन को रूपक शैली में प्रस्तुत किया गया है । दीक्षा के समय दीक्षाकुमारी या संयमश्री के साथ मिलन को भी विवाहलउ कहा गया है। कुमुदचन्द्र कृत 'ऋषभ विवाहला', ऋषभदास कृत आदीश्वर विवाहला, विनयचन्द्र कृत चुनड़ी आदि इस प्रकार की अनेक रचनायें उदाहरणार्थ प्रस्तुत की जा सकती हैं। इस सन्दर्भ में नेमि और राजूल तथा कोशा और स्थूलिभद्र की प्रेम कथा पर आधारित अनेक सरस प्रेमकाव्य कतियाँ लिखी गई हैं। इसी क्रम में बारहमासा, आध्यात्मिक होली और फागु तथा चर्चरी साहित्य की भी खूब रचना हुई है।
१. बनारसीदास -बनारसी विलास-अध्यात्म गीत पृ० १५९ २ बनारसीदास-समयसार पद्य ७४ ३. मैयरा भगवतीदास - ब्रह्मविलास पृ० १४
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