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राजहंस इसकी अन्तिम पंक्तियां इस प्रकार हैं---
प्रगट जासु परिवार भाग्यवंत मोरो हो, वाचक जाणिये ।
दिन दिन जयकार जग चिरंजीवो हो, राजसोम इम कहे।' इस गीत की भाषा सरल, रचना ऐतिहासिक सूचनाओं से पूर्ण किन्तु काव्यत्व की दृष्टि से सामान्य कोटि की है। इनकी किसी अन्य रचना का पता नहीं चल सका है। श्री अगरचन्द नाहटा ने इनकी गणना १७वीं शती के कवियों में की है किन्तु किसी रचना का नामो. ल्लेख नहीं किया है।
राजहंस (I) आप खरतरगच्छ के विद्वान् सन्त हर्षतिलक के शिष्य थे। आपने सं० १६६२ से पूर्व 'दशवकालिकसूत्र बालावबोध' और 'प्रवचनसार' का निर्माण किया। श्री मो० द० देसाई ने इसकी दस प्रतियों की सूचना जैन गुर्जर कविओ में दी है किन्तु इसके आदि और अन्त से जो उद्धरण दिया है वह संस्कृत में है और उससे इसकी मरुगुर्जर गद्य शैली का पता नहीं चलता। इसके आदि और अंत की पंक्तियां आगे प्रस्तुत हैं - आदि-नत्वा श्री वर्धमानाय प्रशमामृतशालीने,
दशवैकालिकं सूत्रं श्री शय्यंभव सूरिभिः । साध्वाचार विचाराधं यत् कृतं पुत्रकामया,
बालावबोध अधुनाकामं तस्य तनोमिअहम् । अंत-इति श्री खरतरगच्छाधीश जिनराजसूरि,
विजयिनि वाणारीस हर्षतिलक गणि, शिष्य श्री जिनहंस महोपाध्याय विरचित, चउहा गोत्रमंडन श्री मदनराज समभ्यर्थनया श्री दशवैकालिक बालावबोधे समिक्षु तामाध्ययनम् ।।
१. श्री अगरचन्द नाहटा-ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह-'महोपाध्याय
समयसुन्दर गीतम्' २. श्री अगर चन्द नाहटा---परंपरा पृ० ७९ ३. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ३७२ और पृष्ठ २ (द्वितीय संस्करण)
तथा भाग १ पृ० ६०३, भाग ३ पृ० १६०१ (प्रथम संस्करण)
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