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________________ राजसुन्दर ४०१ आरामशोभा चौपइ (२७ ढाल सं० १६८७ ज्येष्ठ शुक्ल.९ बाहड़मेर) में भी कवि ने अपने को नयरंग के शिष्य विमलविनय का शिष्य बताया है । रचनाकाल और स्थान इस प्रकार कहा है संवतसोल सत्यासीइहो, जेठमास सुखवास धवली नुमी दीनइ भलइ हो कविउ पूजाफल वास ।' बाहड़मेर नित गहगह इ श्री सुमतिनाथ जिणराइ तस प्रसादि मइं रच्यु श्री संघनइ सुषदाइ । प्रारम्भिक मंगलाचरण देखिये-- सकल कला गुण आगला, आदीस्वर, अरिहंत, नाभिरायकुलसेहरु, प्रणमू श्रीभगवंत । इसकी २७वीं ढाल की धुन है--- 'वंसी वाजइ वेणु', इसी प्रकार अन्य ढालों द्वारा कविगण रास की मूलप्रवृत्ति गेयता की रक्षा का यत्न करते रहे, किन्तु रास आकार में विस्तृत और चरित्र प्रधान हो गये थे। इसलिए वे क्रमशः अभिनेय के स्थान पर पाठ्य होते जा रहे थे। राजसुन्दर - आप खरतरगच्छीय श्री जिनचन्द्र सूरि के शिष्य थे। आपने सं० १६६९ के वैशाख सोमवार को देवकुल पाटन में 'खरतरगच्छ की पट्टावली' लिखी। यह श्री मो० द० देसाई कृत जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० ६९५ पर छपी है। श्री अगरचन्द नाहटा ने भी यह सूचना दी है। यह रचना श्राविका थोभण दे के लिए लिखी गई है। इसमें कुल १९ छन्द हैं। इसमें राजा दुर्लभराय द्वारा जिनेश्वरसरि को सं० १०८० में 'खरतर' विरुद प्रदान करने की घटना का उल्लेख है। जिनेश्वरसूरि के चौथे पाट पर जिनचन्द्रसूरि, पांचवे पर नवांगी अभयदेवसूरि के पश्चात् जिनवल्लभसूरि, जिनदत्तसूरि और जिनचंद्रसूरि II, जिनपतिसूरि, जिनप्रबोध, जिनेश्वर, जिनचंद III, जिनकुशल, जिनपद्म, जिनलब्धि, जिनचंद IV, जिनोदय, जिनराज, जिनवर्धन, जिनचंद्र V अर्थात् २०वें पट्टधर, जिनसागर, जिनसुन्दर, जिनहर्ष, जिनचंद VI, जिनशील, जिनकीति, जिनचंद । इस प्रकार जिनचंद VII तक ३९ सूरियों की पट्टावली गिनाई गई है। १. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ. २२७-२८ (द्वितीय संस्करण) २. श्री अगरचन्द नाहटा-परम्परा पृ० ८७ २६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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