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________________ राजसमुद्र ३९९ लुकट शेठ खलं मुझ नाम, विरुद बहीनइ ऊठिउ ताम, जाइ मिल्यो पारखि लखमसी, तेहनी बुद्धि। तेण बिहुं मिली विमास्यु कस्यु, प्रकटिउं नाम लंकामन इस्यु। अन्त में गुरुपरंपरा इस प्रकार बताई गई है-- श्री विजयदानसूप्रिवरसूरिंद, श्री हर्षसागर उवझाय मुणिंद राजसागर कहइ सुमति मनि धरउ, भवसायर जिमलीलां तरउ ।' राजसमुद्र--इनका विवरण जिनराज सूरि शीर्षक के अन्तर्गत दिया जा चुका है। आपकी अधिकतर रचनायें जिनराजसूरि के नाम से ही लिखी गई हैं। राजसमुद्र आपका दीक्षा नाम था और आचार्य नाम जिनराजसरि था। इन्हें सं० १६७४ में आचार्य पद प्राप्त हआ था। आपने राजसमुद्र के नाम से १४ गणस्थान बंध विज्ञप्ति सं० १६६५ में लिखी थी लेकिन 'शालिभद्रमुनिचतुष्पदिका' सं० १६७८ में जिनराज नाम से लिखा है। बीस विहरमानजिनगीत (सं० १६८५) चतुर्विशति जिनगीत सं० १६९४ पार्श्वनाथगुणवेलि सं० १६८९, गजसुकुमालरास सं० १६९९ और अन्य रचनायें जिनराजसूरि के नाम से ही लिखी गई हैं। जिनका विवरण-उद्धरण जिनराजसूरि शीर्षक से दिया जा चुका है। राजसमुद्र नाम से आपका एक गीत ऐतिहासिक जैनकाव्यसंग्रह में 'जिनसिंहसूरि गीतानि' शीर्षक के अन्तर्गत दसवें क्रम पर संग्रहीत है । गीत का शीर्षक है ‘गुरुवाणी महिमा गीत ।' इस गीत में जिनसिंहसूरि और शाहसलीम (जहांगीर) के सम्बन्ध की ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण सूचना दी गई है। तत्सम्बन्धी दो पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं-- वचन चातुरी गुरु प्रति बूझवी साहि सलेमनरिंदो जी, अभयदान नउ पउहो वजावियउ श्री जिनसिंहरिदो जी।२ १. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० २१२-१३ (द्वितीय संस्करण) और भाग ३ पृ० ७६८-६९ (प्रथम संस्करण) २. ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह । २७ वां गीत श्री जिनसिंह सूरि , गीतानि' का १० वाँ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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