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कवि राजमल
मसजिद खजूर, देहली में सुरक्षित है। इसके कुछ छंद उदाहरणार्थ प्रस्तुत हैं
गयंद राजि गज्जियं, समाजि-वाजि सज्जियं दिस णिसांन वज्जियं, चमू-समूह धाइियं । कमाण-वाण धारियं, कृपाण पाणि नारियं । द्रुवण हुं हंकारेयं, रजो गगण छाइयं ।
दंति निकट वाजि विकट, जोहधिकट कुप्पियं । सिंधु सरणि धूलि तरणि लुप्पियं ।। रवग्ग चमक भुम्मि दमक सद्द गमक वज्जियं ।
'मल्ल' भपाय लच्छितनय देवतनय सज्जियं ।' ये नमूने डिंगल भाषा के निकट वीर रस के हैं। सरल हिन्दी का एक नमूना देखिये
जिनके गृहहेम महावन है तिनको वसुधा हय हेम दिए, जिनको तनजेब तरावन है तिनके घरते दरबार लिए । सुरनंदन भारहमल्ल बली, कलि विक्रम ज्यों सकवंधविए; जस काज गरीब निवाज सबे सिरिमाल
निवाजि निहाल किए। इन छन्दों में भारमल्ल के वैभव, दान और दीरता आदि की प्रशंसा की गई है।
पं० नाथूराम प्रेमी ने ब्रह्मरायमल्ल को ही पांडे रायमल्ल समझा था किन्तु ये बनारसीदास से पूर्व हए थे तभी इनके लिए बनारसीदास ने लिखा होगा। पांडे रायमल्लजी समयसार नाटक के मर्मज्ञ थे। उन्होंने समयसार की बालबोधिनी भाषा टीका बनाई जिसके कारण समयसार का बोध घर-घर फैल गया।२ समयसार जैसे आध्यात्मिक ग्रन्थ का सामान्य जनता में प्रचार कर जैन पण्डितों ने सन्तों और सूफी कवियों के कार्य को आगे बढ़ाया था, तथा विभिन्न वर्गों के बीच भाईचारा और मेलमिलाप का वातावरण बनाया था।
१. कामताप्रसाद जैन-हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास पृ० ८१ २. वही, पृ० ९०
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