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मरु - गुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का वृहद् इतिहास
छन्दो विद्या को शायद इसीलिए कामताप्रसाद ने पिंगलशास्त्र कहा है । " श्री राजमल्ल पांडे और उनकी लाटीसंहिता (श्रावकाचार सं० १६४१, संस्कृत) की प्रति का परिचय डा० कस्तूरचंद कासलीवाल ने राजस्थान के जैनशास्त्र भंडारों की ग्रन्थ सूची भाग ५ पृ० ९ पर और प्रशस्ति संग्रह के पृष्ठ २१ पर भी दिया है ।
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यदि छन्दो विद्या के लेखक पाण्डे राजमल्ल ही हैं तो यह भी स्पष्ट होता है कि श्वेताम्बर और दिगम्बर सम्प्रदाय उस समय अकबर की समन्वयवादी नीति के प्रभाव से काफी करीब आ गये थे क्योंकि भारमल्ल श्वेताम्बर और राजमल्ल दिगम्बर थे । डा० प्रेमसुमन जैन ने भी कवि राजभल को ही छंदो विद्या का लेखक बताया है । अत: यह निश्चित होता है कि पांडे राजमल्ल और कवि राज - मल संभवतः एक ही व्यक्ति थे और वे संस्कृत आदि कई भाषाओं के ज्ञाता तथा गद्य और पद्य की विधाओं के उत्तम लेखक थे । आपकी रुचि विशेषरूप से अध्यात्म में थी और उसका प्रचार वे स्वयम् उपदेश द्वारा तथा अपनी रचनाओं द्वारा करते रहे ।
प्रो० जगदीशचंद्र इनके विषय में लिखते हैं- 'कवि राजमल्ल की रचनाओं के ऊपर से मालूम होता है कि आप जैनागम के बड़े भारी वेत्ता एक अनुभवी विद्वान् थे । आपने जैनवाङ्मय में पारंगत होने के लिए कुंदकुंद, समंतभद्र, नेमिचन्द्र, अमृतचंद्र आदि विद्वानों के ग्रन्थों का विशाल तथा सूक्ष्म दृष्टि से अध्ययन और आलोडन किया था । ' कामताप्रसाद जैन इनकी संस्कृत की चार रचनाओं के साथ पाँचवीं रचना छन्द शास्त्र अथवा पिंगल' का भी उल्लेख करते हैं । इससे स्पष्ट है कि छन्दो विद्या के लिए ही वे छन्दशास्त्र या पिंगलशास्त्र नाम देते हैं और लाटी संहिता आदि के लेखक पांडे राजमल्ल ही छंदो विद्या के लेखक हैं । वे ही कवि राजमल कहे गये हैं । इस रचना के आधार पर का० प्र० जैन उन्हें इस ( १७वी) शताब्दी का श्रेष्ठ कवि मानते हैं । इसकी प्रति श्री दि० जै० सरस्वती भवन पंचायती मंदिर.
१. पं० कामता प्रसाद जैन - हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास परिशिष्ट ।
२. प्रेम सुमन जैन 'राजस्थान का प्राकृत साहित्य (लेख ) ' राजस्थान का जैन साहित्य पृ० ३७
३. कामता प्रसाद जैन -- हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास पृ० ७९
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