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मझ-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास गुर्जर कविओ (द्वितीय संस्करण) के संपादक सं० १६२२ स्वीकार करते हैं, किन्तु 'दोइ जुग' का अर्थ तो ४४ भी हो सकता है, इसी प्रकार रचनाकाल सं० १६२४ भी हो सकता है, अतः इस विवाद में न पड़कर आगे इनकी गुरु परम्परा दे रहा हूँ
चंद्रतणी शाखें हूआ शांति सूरि गुरुराय रे, पीपलगच्छ तेणे थापियो आठ शाषतिहां थाय रे । शासनदेवी चक्रेसरी गुरु ने सांनिधि आवे रे, महिमा अतिहि वधारती शासन जिननं शोभावे रे । कही शाखा अ पांचवी पूर्णचंद्र गुरुनाम रे, हूआ पाटे पनरमे पद्मतिलक सूरि नाम रे । श्री धर्मसागर सूरिवर तसु पाटे गुण गाजे रे, श्री विमलप्रभ सूरीवर सोहे जयवंता ओ राजे रे । ते गुरुना पय प्रणमी गाओ जंबुकुमार रे,
मुनिराजपालभणे इम कीजे सफल अवतार रे ।' राजमल्ल (पांडे) - आप काष्ठासंघीय भट्टारक हेमचंद्रजी की आम्नाय के थे जिसका सम्बन्ध माथुरगच्छके पुष्करगण से था। आप जयपुर से ४० मील दूर दक्षिण में स्थित वैराठ नामक स्थान के रहने वाले थे। ये संस्कृत भाषा, साहित्य, व्याकरण और छंदशास्त्र तथा जैनसिद्धान्त के पारंगत विद्वान् थे। अध्यात्म-दर्शन के प्रचारार्थ ये मारवाड़, मेवाड़, ढूढाड़ में भ्रमण करते रहते थे। आपने प्रभूत साहित्य का निर्माण किया है। अधिकतर रचनायें संस्कृत में हैं। हिन्दी गद्य में इनकी एक रचना 'समयसार की टीका' उपलब्ध है। यह टीका इन्होंने अमृतचन्द्र कृत समयसार की टीका पर मरुगुर्जर या हिन्दी में लिखी है। जंबू स्वामी की रचना सं० १६३२ में हुई। संस्कृत भाषा में इनकी रचना 'अध्यात्मकमल मार्तण्ड उपलब्ध (२५० श्लोक) है। इसमें सात तत्व और नौ पदार्थों का वर्णन है । 'लाटी संहिता में सात सर्ग हैं। इसमें आचारशास्त्र का निरूपण है। यह रचना वैराठनगर के जिनमंदिर में सम्पन्न हई थी। पञ्चाध्यायी के पांचों अध्याय लेखक के निधन हो जाने के कारण पूर्ण नहीं हो पाये। इनका समय निश्चित रूप से वि० १७वीं शती है । १. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० १२७ (द्वितीय संस्करण) २. कस्तूरचन्द कासलीवाल-राजस्थान का जैन साहित्य पृ० ११३-१४
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