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राजपाल
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राजचन्द्रसूरि- - आप पार्श्व चंद्र सूरि की परम्परा में रामचन्द्रसूरि के पट्टधर थे । आपने सं० १६७८ या सं० १६६७ चैत्र, २ को दशवैकालिक सूत्र पर बालावबोध लिखा । अधिकतर प्रतियों में रचनाकाल सं० १६६७ ही दिया गया है, संभवतः यही ठीक तिथि है । आपकी गद्य शैली का नमूना उपलब्ध नहीं हो सका है ।"
राजपाल - - पिप्पलक गच्छ की पूर्णचंद्र शाखा के पद्मतिलकसूरि > धर्मसागर सूरि > विमलप्रभसूरि के आप शिष्य थे । पिप्पलक गच्छ में एक और धर्मसागर सूरि हुए हैं वे इसी गच्छ की त्रिभविया शाखा के धर्मसुन्दरसूरि के पट्टधर थे । प्रस्तुत धर्मसागरसूरि पिप्पलक गच्छ स्थापक शांतिसूरि के १५ वें पट्ट में स्थापित पूर्णचन्द्र शाखा के पद्मतिलकसूरि के पट्टधर थे । हमारे कवि राजपाल इन्हीं धर्मसागर सूरि के प्रशिष्य एवं विमलप्रभ सूरि के शिष्य थे । इन्होंने 'जंबूकुमार रास' (५२५ कड़ी सं० १६२२ माह वदि ७, रविवार) लिखा है जिसमें प्रसिद्ध केवली जंबू स्वामी का चरित्र चित्रित है ।
इसका प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है-
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सकल जिनवर सकल जिनवर सकल सुखकार । सकल कला शोभित विमल मुख मयंक सम अमल सोहे । सकल कर्म संखे करि मुगति नारि स्युं रंगे मोहे | तसु पदपंकज नित नमुं आणी मनि उल्हास, गौतम गणधर प्रणमतां, आवे बुद्धि प्रकाश । २
रचनाकाल - कणिका उपदेशमाल थी गुरुमुखे हीये विचार रे । तेह अरथ जांणी करी मे रचियो ओ राससार रे । विक्रम राये थापियो संवत ऋतु इन्द्र जाणो रे । दोइ युग वरस विचारयो मास मने मधु आणो रे ।
इन संकेतों से रचनाकाल का स्पष्ट निर्णय न कर पाने के कारण श्री देसाई ने पहले सं० १६०६ और बाद में सं० १६२२ कहा । जैन
१. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ खण्ड २, पृ० १६०६ (प्रथम संस्करण) और भाग ३ पृ० १३७ (द्वितीय संस्करण ) २ . वही भाग भाग २ पृ०
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पृ० १८९-१९१, भाग ३ पृ० ६६१ (प्रथम संस्करण) और १२५-१२६ द्वितीय संस्करण )
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