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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास रित वैष्णव भक्ति का है; फिर भी हम चाहें तो इसे मरुगुर्जर जैन साहित्य का भक्तिकाल सुविधापूर्वक कह सकते हैं क्योंकि इस काल में एक विशेष प्रकार का पूजा, स्तोत्र, स्तवन सम्बन्धी भक्ति साहित्य प्रभूत परिमाण में लिखा गया। इस काल में बनारसीदास, ब्रह्मरायमल्ल, भैया भगवतीदास, महात्मा आनन्दघन और यशोविजय उपाध्याय आदि अनेक प्रसिद्ध आध्यात्मवादी और भक्त कवि हो गये हैं जिनकी रचनायें मात्र साम्प्रदायिक दृष्टि से ही नहीं अपितु साहित्यिक दृष्टि से भी उच्च एवं सरस कोटि की है। इसलिए मरुगुर्जर भाषा शैली के १७वीं शताब्दी के जैनसाहित्य को भक्ति काल के नाम से पुकारने का नम्र प्रस्ताव प्रस्तुत किया जा रहा है। जैन भक्तिकाव्य की कतिपय विशेषतायें- इस काल के मरुगुर्जर जैन साहित्य का विभाजन भक्तिकाव्य, ऐतिहासिक काव्य, रूपककाव्य और लोककाव्य आदि कई वर्गों में किया जा सकता है किन्तु इस ग्रन्थ में ऐसा करने पर पूर्वनिर्धारित अकारादि क्रम का निर्वाह संभव न हो सकेगा। अतः किसी वर्गीकरण के आधार पर इतिहास वर्णन का विचार छोड़ना पड़ा है। इस काल की साहित्यिक विशेषताओंभाव, रस, छंद, अलंकार आदि के साथ भाषा की सामान्य विशेषताओं का वर्णन प्रारम्भ में ही इसलिए करना ठीक समझा गया है क्योंकि कहीं तो रचनाओं की अनुपलब्धता और कहीं स्थान की सीमा के कारण प्रत्येक कवि और उसकी हरेक रचना का अलग-अलग विवेचन करना संभव न हो सकेगा, अतः समग्ररूप से कतिपय विशेषताओं का उल्लेख पहले ही किया जा रहा है। हिन्दी भक्तिकाव्य का व्यापक प्रभाव हिन्दी जैन साहित्य पर पड़ा और भक्तिभाव के विविध पक्षों यथा-सख्य, दास्य आदि भावों का कुछ परिवर्तन करके अथवा वैसे ही जैन कवियों ने भी वर्णन किया है जैसे हिन्दी भक्त कवियों ने किया है। उदाहरणार्थ सख्यभाव का जैन ग्रन्थों से संक्षिप्त उल्लेख प्रस्तुत किया जा रहा है। सख्यभाव में भगवत्तत्त्व का आरोपण न करके भगवान को भक्त अपने सखा या मित्र रूप में देखता है। इसमें सेव्य-सेवक या दास्य भाव की भाँति भक्त में कोई संकोच नहीं रहता। जैन साधना में कर्ममल से रहित विशुद्ध आत्मा को परमात्मा या सिद्ध कहा जाता है। आत्मा में परमात्मा बनने के सभी गुण विद्यमान हैं । जीव उस आत्मा से प्रेम करता तथा उसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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