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________________ उपोद्घात २१ ज्ञानतिलक ने बृहच्छान्तिस्तोत्र और सिन्दूर प्रकर आदि पर टीकायें लिखीं । भानुचन्द्र इस समय के राज्यमान्य विद्वान् थे। इन्होंने वाणकृत कादम्बरी पर प्रसिद्ध टीका लिखी है। इन्होंने अकबर के लिए सूर्यसहस्रनामस्तोत्र की रचना की थी। इनके शिष्य सिद्धिचन्द्र, रत्नचन्द्र भी प्रसिद्ध विद्वान् थे। रत्नचन्द्र ने कृपारस कोश, नैषध और रघुवंश काव्यों की सुबोध टीकायें लिखीं। देवविमलगणि ने 'हीरसौभाग्य' नामक प्रसिद्ध महाकाव्य लिखा। इसी प्रकार साधुसुन्दर, देवसागर, भावविजय और महिमसिंह आदि अनेक विद्वानों ने संस्कृतप्राकृत में उत्तम ढंग की मौलिक एवं टीकात्मक रचनाओं से जैनसाहित्य को श्रीसम्पन्न किया । महिमसिंह कृत मेघदूत की टीका समस्त टीका साहित्य में उत्तम समझी जाती है। नामकरण -वि० की १७वीं शताब्दी के हिन्दी जैन साहित्य के नामकरण को लेकर मतैक्य नहीं हो सका है। किसी युग का नाम प्रवृत्तियों, युगपुरुषों या भाषाओं के नाम पर रखा जाता है जैसे भक्तिकाल, द्विवेदीयुग या ब्रजभाषा साहित्य इत्यादि; किन्तु १७वीं शताब्दी के हिन्दी या मरुगुर्जर जैन साहित्य के लिए ऐसा कोई नाम मतभेद से मुक्त नहीं दीखता। १६वीं शताब्दी में तपागच्छ एवं खरतरगच्छ में उग्र मतभेद हो गया था। १७वीं शताब्दी में हीरविजयसूरि और जिनचन्द्रसूरि का उदय धर्म की प्रभावना और संघ की दृष्टि से लाभकारी हुआ। देसाई जी लिखते हैं कि जैसे महावीर ने विम्बसार को, हेमचन्द्रसूरि ने सिद्धराज जयसिंह को उसी प्रकार हीरविजयसूरि ने शाह अकबर को प्रभावित करके धर्म की बड़ी प्रभावना की । इसलिए वे गुर्जर जैनसाहित्य में इस शताब्दी को उनके नाम पर 'हैरक युग' के नाम से पुकारना समीचीन मानते हैं। प्रस्तुत साहित्येतिहास मात्र गुर्जर का नहीं अपितु मरु का भी है, मात्र तपागच्छीय नहीं वरन् खरतरगच्छीय जैनाचार्यों की रचनाओं का भी है अतः जैसे बहुत से लोगों को इसे जिनचन्द्र युग कहना स्वीकार न होगा (भले वे युगप्रधान थे); उसी प्रकार इसे 'हैरक युग' मानने में भी कइयों को आपत्ति होगी । अतः यह नाम सर्वस्वीकार्य न होगा। ___भक्ति इस शताब्दी की प्रमुख काव्यप्रवृत्ति की और हिन्दी में इसे 'भक्तिकाल' निर्विवाद रूप से कहा गया है किन्तु जैन भक्ति का स्वरूप पूर्णतया वैसा ही नहीं है जैसा भक्ति आन्दोलन द्वारा प्रतिपादित-प्रचा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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