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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास रत्नसुन्दर-आप पूर्णिमागच्छीय सौभाग्यरत्नसूरि के पट्टधर गुणमेरु के शिष्य थे। आपने कई रचनायें की हैं जो भाषा एवं भाव की दृष्टि से सरस एवं काव्यगुण सम्पन्न हैं। पंचाख्यान चौपाई, रत्नवती चौपाई, शुकबहोत्तरी और सप्तव्यसन चौपाई आपकी उल्लेखनीय रचनायें हैं। पंचाख्यान चौपाई संस्कृत की अतिविख्यात रचना पंचतन्त्र पर आधारित है। यह अनुवाद नहीं है अपितु इसमें पर्याप्त मौलिकता एवं काव्यत्व है। इसके तीन नाम हैं--(१) पंचाख्यान चौपई, (२) कथाकल्लोल और (३) पंचकारण रास। यह रचना सं० १६२२ आसो शुदी ५ रवि को साणंद में सम्पन्न हुई। कवि संस्कृत का अध्येता एवं विद्वान् था। रचना के प्रारम्भ में प्राप्त संस्कृत के सुन्दर श्लोक इस कथन के प्रमाण हैं। पञ्चाख्यान के प्रारम्भ में यह इलोक
प्रणम्य पूर्व परमात्मनः पदं सरस्वतीमीश सूतं च सद्गरु,
सुदीप रूपामिव मूढ़भावसे सुपञ्चाख्यान चतुष्पदी बुवे ।' इसके पश्चात् संस्कृत में सरस्वती वंदना है, कवि ने सरस्वती की शोभा का कई छन्दों में वर्णन किया है, यथा
कमलनयणिकाजल नी रेह, अधररंग पखाली गेह,
दन्त पंक्ति दाडिमनी कली, के जवहर हीरे सुं मली। पंचतंत्र के लेखक विष्णुशर्मा के प्रति आभार इस पंक्ति में देखियेविष्णुशर्मा वाडव भलो श्री गोउ नाति सुजाण,
सरस कथा रस वीनवे, नामे पञ्चास्यान । प्रथम आख्यान मित्रभेद विचार के बाद द्वितीय अधिकार में मित्रप्राप्ति से सम्बन्धित कथा है। इसी प्रकार तीसरा, चौथा और पाँचवाँ अधिकार पूरा किया गया है।
नीतिशास्त्र कहीइ ओ नाम, पंचाख्यान बीजउ अभिधान;
तेह ग्रन्थ अणुसारइ कही, बडा कूपा पासइ से कूइ । रचनाकाल-सोल चउवीमउ वछर सार, सुदि आसो पांचमि रविवार,
साणंद नयर शोभइ शुभठाम, पूनिम पखि गछ अभिराम । १. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० १२८ (द्वितीय संस्करण) और वही
पृ० १२७-१६५ (द्वितीय संस्करण)
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