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________________ रत्नप्रभ शिष्य ३८५ रत्नलाभ-ये खरतरगच्छ की क्षेम शाखा के मुनि क्षमारंग के शिष्य थे । इनकी रचना 'ठंठणकुमारचौपाई' सं० १६५६ जयतारण में और दूसरी रचना 'श्रीपालचौपाई' सं० १६६२ में लिखी गई। ठंठणकुमार चौपाई का रचनाकाल कवि ने इस प्रकार बताया है--- संवन सोल सो छपन्ना, सावणइ आठमि तिथि भृगुवार, श्री जयतारण पूरवर परगडउ मंडोवर शृङ्गार।। तिहाँ श्री विमलनाथ सुपसाउले, खिमारंग गणि शिष्य, रत्नलाभ गुणगावतां, पूजइ मनह जगीस ।' इसमें कुल ३५ गाथायें हैं--'श्रीपालप्रबन्ध चौपाई' (सं० १६६२ भाद्र कृष्ण ६) का आदि चउवीसे जिणवर मनि ध्याई, सूयदेवी समरु मनलाई । पभणिसु महिमा मानव पद सार, मंत्र अनोपम श्री नवकार । इसमें श्रीपाल की कथा के उदाहरण से नवकार मंत्र की महिमा बताई गई है, जैसा कि इन पंक्तियों से स्पष्ट है-- सिद्धि चक्रनउ अहज मंत्र, नवपद आराहउ जे तंत्र, मयणासुन्दरि जिम श्रीपाल, आराधत फलिउ तत्काल । रचनाकाल--संवत सोलह सइ बासठा वरसइ, भादव वदि छठि दिन हरषइ । युगप्रधान जिनचंद सूरिराज रे, श्री जिनसिंह सूरि युवराजइ । वयणा चरिय अमरमाणिक्य गणि, खिमारंग तसु सीस सिरोमणि, रत्नलाभ गणि तेहनइ सीसइ, ओह प्रबन्ध रच्यउ सुजगीसइ । रत्नप्रभशिष्य--अंचलगच्छीय रत्नप्रभ के किसी अज्ञात शिष्य ने 'गजसुकुमार चौपाई' की रचना सं० १६२४ में की। यह रचना धर्ममूर्ति १. श्री अगर चन्द नाहटा--परम्परा पृ० ८५ २. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ८९१-९२ (प्रथम संस्करण) और भाग २ पृ० २९९ (द्वितीय संस्करण) ___३. वही, भाग ३ पृ० ८९१-९२ (द्वितीय संस्करण) २५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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