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रत्नभूषण सूरि
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रचनाकाल के अन्तर्गत कवि ने महीना और दिन बताया है किन्तु वर्ष का पता नहीं है, यथा
श्रावणवदि रे सुन्दर जाणिइ वलि अकादसी दीस,
सुरत मोहि रे ओ रचना रची, जहां आदि जिन जगदीस ।' इसमें श्रीकृष्ण द्वारा रुक्मिणी के हरण की कथा कही गई है। ऊषा अनिरुद्ध हरण-आदि
परम प्रतापी परमंतु परमेश्वर स्वरूप, परम ठांव को लहीजे अकल अक्ष अरूप । सारदा देवी सुन्दरी सारदा तेहनु नाम,
श्री जिनवर मुख थी ऊपनी उमे उत्तमा ठाम । भाषा पर गुर्जर प्रभाव अपेक्षाकृत अधिक है, यथा
ऊषा बोलि माधुरी वाणि, सांभल सखी तु सुखनी खांण ।
सखी लखी तु देखाडि लोक, बाहरी मलागति सघली फोक । कृष्ण के पुत्र अनिरुद्ध की सुन्दरता का वर्णन करती हुई कहती
वसुदेव केरो सुन्दर पुत्र जिणे घर राख्या घरना सत्र,
सुन्दरनारायण ति राम रूप देख्याग्या तें अभिराम । अन्त--श्री गिरिनारि पडियो सिद्ध तणु पद सार
सूख अनन्ता भोगवे अकल अनंत अपार । अनिरुद्ध हरण ज सांभलो एकचित सहुआज, जिनपूराण जोई रच्युजिथी सरी बहुकाजि । श्री ज्ञानभूषण ज्ञानी नमूजे ज्ञान तणो भंडार,
तेहतणा मुख उपदेश थी रच्यो अनिरुद्ध हरणविचार । आपकी तीसरी रचना 'जिनदत्तरास' में भी रचना का महीना है पर वर्ष नहीं दिया गया है, यथा१. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० १५१०-११ (प्रथम संस्करण) भाग २
पृ० १५१-१५२ (द्वितीय संस्करण) २. सं० डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल-राजस्थान के जैन शास्त्रभंडारों की
ग्रन्थसूची ५वां भाग पृ० ४२२-४२३
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