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________________ रत्नभूषण सूरि ३८३ रचनाकाल के अन्तर्गत कवि ने महीना और दिन बताया है किन्तु वर्ष का पता नहीं है, यथा श्रावणवदि रे सुन्दर जाणिइ वलि अकादसी दीस, सुरत मोहि रे ओ रचना रची, जहां आदि जिन जगदीस ।' इसमें श्रीकृष्ण द्वारा रुक्मिणी के हरण की कथा कही गई है। ऊषा अनिरुद्ध हरण-आदि परम प्रतापी परमंतु परमेश्वर स्वरूप, परम ठांव को लहीजे अकल अक्ष अरूप । सारदा देवी सुन्दरी सारदा तेहनु नाम, श्री जिनवर मुख थी ऊपनी उमे उत्तमा ठाम । भाषा पर गुर्जर प्रभाव अपेक्षाकृत अधिक है, यथा ऊषा बोलि माधुरी वाणि, सांभल सखी तु सुखनी खांण । सखी लखी तु देखाडि लोक, बाहरी मलागति सघली फोक । कृष्ण के पुत्र अनिरुद्ध की सुन्दरता का वर्णन करती हुई कहती वसुदेव केरो सुन्दर पुत्र जिणे घर राख्या घरना सत्र, सुन्दरनारायण ति राम रूप देख्याग्या तें अभिराम । अन्त--श्री गिरिनारि पडियो सिद्ध तणु पद सार सूख अनन्ता भोगवे अकल अनंत अपार । अनिरुद्ध हरण ज सांभलो एकचित सहुआज, जिनपूराण जोई रच्युजिथी सरी बहुकाजि । श्री ज्ञानभूषण ज्ञानी नमूजे ज्ञान तणो भंडार, तेहतणा मुख उपदेश थी रच्यो अनिरुद्ध हरणविचार । आपकी तीसरी रचना 'जिनदत्तरास' में भी रचना का महीना है पर वर्ष नहीं दिया गया है, यथा१. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० १५१०-११ (प्रथम संस्करण) भाग २ पृ० १५१-१५२ (द्वितीय संस्करण) २. सं० डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल-राजस्थान के जैन शास्त्रभंडारों की ग्रन्थसूची ५वां भाग पृ० ४२२-४२३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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