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- भट्टारक रत्नकीर्ति
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ये जीवन जगत और धर्म दर्शन का सभी कोना झांक आये हैं और सर्वत्र मार्ग-दर्शन किया है । इन्होंने आचार्य गुण वर्णन, उपाध्याय गुण वर्णन, साधु गुण वर्णन, नवकार मंत्र महिमा आदि नाना विषयों पर कुशलतापूर्वक प्रभूत साहित्य उच्चकोटि का प्रस्तुत किया है । वस्तुतः १७वीं के अन्त और १८वीं के पूर्वार्द्ध में ये सर्व श्रेष्ठ कवि ठहरते हैं । जंबूस्वामी ब्रह्मगीता, श्री पंचपरमेष्ठी गीता आदि कई गीता भी रच डाली है । बहुत सी चौपाइयाँ, रास, संज्झाय और बोल आदि रचे हैं । इनके अनेकविध काव्य रूपों की विविधता वर्ण्य विषयों की विविधता को प्रभावशाली ढंग से व्यक्त करने में बहुत सहायक सिद्ध हुई हैं ।
यशोविजय - जसविजय - आप तपागच्छीय विमल हर्ष के शिष्य थे । आपने सं० १६६५ में लोकतालिका बालावबोध लिखा । ' देसाई इन्हे १८वीं शताब्दी और बाद में १७वीं शती में दिखाया है । यदि इन्होंने सं० १६६५ में रचना की और उपा० यशोविजय जी सं० १६८० में पैदा हुए तो ये निश्चय ही उपाध्याय यशोविजय से भिन्न और अवस्था में उनसे काफी बड़े तथा निश्चित रूप से १७वीं शताब्दी के लेखक हैं; किन्तु इनकी रचना तथा इनका कुछ भी विवरण श्री देसाई ने कहीं नहीं दिया है । केवल रचना का नामोल्लेख मात्र किया है ।
भट्टारक रत्नकीति- आप घोघानगर निवासी हूंबड गोत्रीय श्रेष्ठि 'श्री देवीदास के पुत्र थे । आपकी माता का नाम सहजलदे था । आप भट्टारक अनन्दि के शिष्य थे । इन्होंने जैन सिद्धान्त, काव्यशास्त्र, व्याकरण और ज्योतिष आदि विषयों का गुरु के सान्निध्य में गहन अभ्यास किया था । सं० १६४३ में इन्हें भट्टारक पद पर प्रतिष्ठित किया गया । आप विद्वान् के साथ ही स्वरूपवान् भी थे । - कवि गणेश ने लिखा है
अरध राशि सम सोहे भाल रे, वदन कमल शुभ नयन विशाल रे । दसन दाडिम समरसना रसाल रे, अधर बिंबाफल विजित प्रवाल रे ।
१. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० ५९०, भाग ३ पृ० १६०२
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