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________________ ३७६ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास आदि के पदों के समकक्ष रखा जा सकता है। इन पदों की भाषा हिन्दी है । भजन भजन बिनु जीवित जैसे प्रेत, मलिन मन्द मति घर-घर डोलत, उदर भरन के हेत, दुर्मुख वचन बकत नित निन्दा, सज्जनसकलदुख देत । कबहुँ पापको पावत पैसो, गाढ़े धूरिमें देत, गुरु ब्रह्मन अबुत जन सज्जन, जात न कवण निकेत । सेवा नहीं प्रभुतेरी कबहुं, भुवन नील को खेत ।' कंत बिनुकहो कौन गति नारी, सुमति सखी जाइ वेगें मनावो, कहे चेतना प्यारी। रीतिकालीन दूती प्रसंग की झलक इस रूपक में देखी जा सकती है, किन्तु रीतिकालीन अधिकांश कवि मांसल शृंगार की विवृत्ति में लगे थे और जैन कवि उन लोकप्रिय माध्यमों का सदुपयोग आध्यात्मिक क्षेत्र में कर रहे थे। प्रिय से चेतना का मिलन होता है और लय की उस आनन्द स्थिति का वर्णन करता हुआ कवि कहता है मन कितही न लागे हे जे रे पूरन आस भई अली मेरी, अविनाशी की सेजे रे । इसी प्रकार कहीं पर ब्रह्म परमात्म का स्वरूप, कहीं माया की भयानकता आदि के द्वारा कवि ने अध्यात्म का मर्मस्पर्शी संदेश दिया है। इन्होंने 'हरियाली' लिखा है जिसकी शैली संतकवियों की उलटबासियों जैसी है, जैसे-- कहियो पंडित ! कोण ओ नारी बीस बरस की अवधि विचारी कहियो। दोय पिताजे अह निपाई, संघचतुर्विधिमन में आई। कीडीओ एक हाथी जायो, हाथी साहमो ससलो धायो। १: सं० मुनि श्री कीर्तियश विजय -- 'गुर्जरसाहित्यसंग्रह'-१, प्रकाशक ---जिनशासन रक्षा समिति, लालबाग, बम्बई २. गुर्जर साहित्य संग्रह-१ पृ० १७९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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