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उपाध्याय यशोविजय
प्रतिक्रमण हेतु गभित स्वाध्याय सं० १७२२ सुरत, ११ अंगनी संज्झाय सं० १७३२ सुरत, आदि व्रत-नियम आदि से सम्बन्धित रचनायें हैं।
समकितना षष्टस्थान स्वरूपनी चौपाई (टब्बा सहित, सं० १७३३) जैन कथा रत्नकोष (पृ० २८२-३१९) में प्रकाशित हैं। महावीर स्तवन, हूंडी स्तवन १५० गाथा, (ढुढकमत खंडन) सं० १७३३ विजयादशमी, इन्दिलपुर; निश्चय व्यवहार विवाद, श्री शांतिजिनस्तवन, सं० १७३२, संयमश्रेणिविचारस्तवन, सीमन्धरस्वामी स्तवन आदि स्तवन और साम्प्रदायिक खंडनमंडन सम्बन्धी रचनायें हैं। आठ दृष्टि संज्झाय प्रकाशित है। इसमें हरिभद्रसूरि के योगदृष्टिसमुच्चय का सुन्दर भावानुवाद है । इस पर ज्ञानविमलसूरि ने टब्बा लिखा है। ब्रह्मगीतर भी प्रकाशित रचना है। ये सभी १८वीं शताब्दी की रचनायें हैं। इसलिए इनका विस्तार से उद्धरण-विवरण नहीं दिया जा रहा है। तीन चौबीसी, बीसी, सम्यक्त्वना, ६७ बोल संज्झाय, १८ पाप स्थानकनी सं०, अमृतबेलीनी सं०, चार आहारनी सं०, सुगुरु स्वाध्याय आदि अनेक छोटी मोटी रचनायें प्रकाशित हैं। सुगुरु स्वाध्याय के अन्त में प्राकृत की यह गाथा उनके प्राकृत ज्ञान का सूचक है
सिरि पद्मविजय गुरुणं पसाय मासज्ज सयत्न कम्मकरं
भणिया गुणा गुरुणं साहुण जससिणए । पञ्चपरमेष्ठी गीता, कुगुरुनी संज्झाय, शीतलजिनस्तवन, नवपदपूजा, जिनसहस्रनाम वर्णन, चउती पउती की सज्झाय, हरियाली, स्थापना कुलक, संयमश्रेणिनी संज्झाय आदि रचनायें धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं । कुमतिखंडन १० मत स्तवन आदि
सुखदायक चोबीशमो प्रणमी तेहना पाय, गुरुपद पंकज चित्तधरी, श्रुत देवी सारदमाय त्रण तत्व स्वरूप छे आत्मतत्व धरेय,
देव तत्व गुरुतत्वरे, धर्मतत्व ज्यो लेय ।। इनके कुछ पद गुर्जर साहित्य संग्रह से दिए जा रहे हैं, ताकि इनकी कवित्व शक्ति का पाठकों को आस्वाद प्राप्त हो सके। इनके पदों को भक्तिकाल के समर्थ कवि सूर, तुलसी, नन्ददास, मीरा और सुन्दरदास
१. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० १७-५६ (प्रथम संस्करण)
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