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________________ उपाध्याय यशोविजय ३७३ गाने लगते थे, उनके इस सहज साधक स्वरूप पर यशोविजय जी मुग्ध थे। उनके सम्बन्ध में उपाध्याय जी ने 'आनन्दघन अष्टपदी में लिखा है। मारग चलत चलत गात, आनन्दधनप्यारे, रहत आनंद भरपूर । ताको सरूप भूप त्रिहुँलोक थे न्यारो, बरसत मुख पर नूर । कवि का विचार है कि आनन्दघन को जानने के लिए उनकी भावभूमि तक जाना होगा; सब नहीं जान सकते, कवि कहता है आनन्द की गत आनंदघन जाणे, वाइ सुख सहज अचल अलखपद, वा सुख सुजस बखानें। सुजस विलास जव प्रगटे आनन्दरस, आनन्द अखय खजाने, ऐसी दशा जव प्रगटे चित्त अंतर, सोही आनंदघन पिछाने ।' कहते हैं कि अर्बुद क्षेत्र के किसी समीपस्थ गाँव में यशोविजय जी व्याख्यान दे रहे थे उसी सभा में आनन्दघन से उनकी भेंट हुई थी और आनन्दघन के अध्यात्मरस का प्रबल प्रभाव यशोविजय पर पड़ा, उन्होंने अष्टपदी में लिखा है आनन्दघन के संग सुजस ही मिले, जब तब आनन्द सम भयो सुजस । पारस संग लोहा जो फरसत, कंचन होत हो ताके कस। आपकी कुछ प्रमुख रचनाओं का परिचय दिया जा रहा है जसविलास- यह रचना 'संज्झाय, पद और स्तवनसंग्रह' में छपी है। इसमें ७५ मुक्तक पद हैं। सभी जिनेन्द्र स्तवन से संबंधित हैं उदाहरणार्थ हम मगन भये प्रभु ध्यान में, बिखर गई दुविधा तन मन की, अचिरा सुत गुन गान में। हरिहर ब्रह्म पुरंदर की रिधि आवत नहि कोउ मान में। चिदानन्द की मौजमची है, समता रस के पान में । १. डा० प्रेमसागर जैन-हिन्दी भक्तिकाव्य और कवि पृ० २०३-०४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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