SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 390
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपाध्याय यशोविजय ३७१ पूर्ण दशक १७वीं शताब्दी में भी बीते अतः आपको १७वीं शताब्दी के कवियों में गिन लेने का लोभ रोक न पाने के कारण इनका विवरण यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है। आपकी जीवनी के सम्बन्ध में अनेक प्रामाणिक तथ्य 'श्री सूजसवेली भास' में उपलब्ध हैं। इसके कर्ता तपागच्छीय हीरविजयसूरि > कीर्तिविजय के शिष्य कान्ति विजय हैं। यह रचना सं० १७४५ के आसपास लिखी गई, जिसमें यशोविजय जी का गुणानुवाद किया गया है। यशोविजय जी उपाध्यायजी के नाम से प्रसिद्ध थे । विनयविजय इनके गुरुभाई थे। दोनों ने साथ-साथ काशी में शिक्षा ग्रहण की थी और अपने समय के महान् पण्डित हए। उपाध्याय जी को श्रुतकेवली, कूर्चालिशारदा आदि विरुदों से विभूषित किया गया था। इनके बचपन का नाम जसवंतकुमार था। आपका जन्म गुजरात में पाटण के समीप कन्होड़ नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम नारायण और माता का नाम सोभाग दे था। इन्होंने सं० १६८८ में नयविजय से दीक्षा ली और नाम यशोविजय पड़ा। इनके साथ ही इनके अनुज पद्मसिंह ने भी दीक्षा ली और उनका नाम पद्मविजय पड़ा। सं० १६९९ में इन्होंने संघ के समक्ष राजनगर में अष्टावधान किया। इनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर शाह धनजी ने नयविजय से आग्रह किया कि इन्हें विद्याभ्यास के लिए काशी भेजा जाय, धन मैं दूंगा। काशी में किसी भट्टाचार्य से इन्होंने शास्त्राभ्यास किया और न्याय, मीमांसा जैमिनी, वैशेषिक तथा बौद्ध आदि सिद्धान्तों का तीन वर्षे तक गहन अध्ययन किया, तत्पश्चात् आगरा जाकर किसी पंडित जी से तर्क, प्रमाण आदि शास्त्रों का गम्भीर अभ्यास किया। इसके बाद अहमदाबाद गये जहाँ गजरात के सूबेदार महावत खाँ ने इनका आदर-सत्कार किया। इन्होंने सैकड़ों ग्रंथों की रचना की है। विजयदेव के पट्टधर विजयप्रभसूरि ने इन्हें सं० १७१८ में उपाध्याय पद से विभूषित किया। सं० १७४४ में यशोविजय जी जब डभोइ नगरी में चातुर्मास कर रहे थे तभी अपनी आयु पूर्ण जान भनशनपूर्वक शरीर त्याग किया। आप तपागच्छीय हीरविजयसरि की परंपरा में उपाध्याय कल्याणविजय> लाभविजय गणि> जितविजय के गुरुभाई नयविजय गणि के शिष्य थे। आपका तत्कालीन अनेक विद्वानों ने यशोगान किया है। आप व्याकरण, काव्य, कोष, अलंकार, छन्द, तर्क, आगम-सिद्धान्त, नय, निक्षेप, प्रमाण आदि नाना विषयों के पारंगत विद्वान् थे। उनके ग्रन्थों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy