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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास वीर कथा कहिवा रस थाय, ते गुरु भानुभट्ट महिमाय । लगता है ये भानुभट्ट कवि के विद्यागुरु थे क्योंकि दीक्षा गुरुओं की परम्परा में इनका नाम नहीं है। अब रचना का आदि और अंत देकर यह विवरण समाप्त किया जा रहा हैआदि.-- सदा सम्पद सदा सम्पद रूप ओंकार, परमेष्टी पंच सहित, देव त्रणि सारदा सेवित, महाज्ञान आनन्दमय ब्रह्म बीज योगीन्द्र वंदित, भूयण त्रणि गुणत्रणिमय, विद्या चौद निवास, हुं प्रणमुं परमातमा, सर्व सिधि सुषवास । अन्त-- कहइ वाचका मंगलमाणिक्य, अंबड कथा रसइं आधिक्य, ते गुरुकृपा तणो आदेश, पूरा सात हुआ आदेश।' यह मुनिरत्नसूरि की मल अंबडकथा का अनुवाद है, मौलिक कृति नहीं है फिर भी इसकी लोकप्रियता को देखते हुए इसे प्रकाशित किया गया है। इसकी लोकप्रियता में कवि कर्म की कुशलता और कथा का औत्सुक्य ही मूल कारण है। मोहनदास कायस्थ--आपकी एक रचना 'स्वरोदय' आयुर्वेद पर प्राप्त है। इस लघकृति में स्वर के साथ नाड़ी परीक्षा का विशेष रूप से वर्णन किया गया है । यह रचना सं० १६८७ में कन्नौज प्रान्तान्तर्गत नैमिसार तीर्थ के समीप कुरस्थ नामक ग्राम में लिखी गई। यह पद्यबद्ध अवश्य है किन्तु इसे साहित्य नहीं कहा जा सकता। अतः इसका विवरण-उद्धरण नहीं दिया जा रहा है। उपाध्याय यशोविजय-आप तपागच्छीय श्री नयविजय गणि के शिष्य थे। आपकी उपस्थिति सं० १६८० से सं० १७४४ तक निश्चित है। अतः आपकी अधिकतर रचनायें अठारहवीं शताब्दी में रची गई हैं, परन्तु आपके जीवन के प्रारम्भिक दो महत्व १. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० २४७-५२ (प्रथम संस्करण) तथा भाग २ पृ० १६९-१७४ (द्वितीय संस्करण) २. डॉ० कस्तूर चन्द कासलीवाल-राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डार की ग्रन्थ सूची भाग ५ पृ० ३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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