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मंगलमाणिक्य
अंबड कथानक चौपइ २२२५ कड़ी की विस्तृत रचना सात आदेश या भागों में पूर्ण हुई है। इसका समापन सं० १६३९ कार्तिक शुक्ल १३ सोमवार को उज्जैन में हुआ जबकि इसका प्रारम्भ सं० १६३८ ज्येष्ठ शुक्ल ५, गुरुवार को किया गया था। इस प्रकार इसमें प्रायः दो वर्ष लग गये। यह रचना प्रकाशित है। इसके सम्पादक ब० क० ठाकोर हैं। यह रचना कवि ने अपने मित्र लाडजी के लिए लिखी थी। संबंधित पंक्तियाँ देखिये -
मित्र लाडजी सुणिवा काजि,
वाची कथा विडालंबी राजि । रचनाकाल
संवत सोल उगणच्यालीस, कार्तिकसित ते रसि शशि दीस।
सिद्धियोग ऋक्ष आश्विनी, अंबडरास चउपइ नीपनी। इस रचना में यथावसर यद्यपि नवो रस हैं पर प्रधानता वीररस की पाई जाती है, यथा--
नवरस मय अंबडरायनी श्रोता जन पावनी,
वीरकथा भावई जे कहइ, च्यारिपदारथ सहिजईलहइ । रचना का प्रारम्भ
संवत सोल अठतीस इ सार, जेठ सुदि पंचमीगुस्वार,
मांडिउ रास मूलसिधियोग, रही उजेणिपुरी संयोगि। उस समय उज्जैन पर निजामों का शासन था, कवि लिखता है
भटीखान निजाम पसाय, विद्या भणी भानुभट पाय । यह रचना मुनिरत्नसूरि की अम्बडकथा का पद्यानुवाद प्रतीत होती है जैसा निम्न पंक्तियों से प्रकट होता है___ पण्डित आगलि ते मतिमंद, भानुभट गुरु विद्या वृन्द;
रची चउपइ तासु प्रसाद, अम्बड कथा तणो अनुवाद ।' इस रचना में भानुभट की कृपा का कई वार उल्लेख किया गया है, यथा
१. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० २४७-५२ (प्रथम संस्करण) और भाग २
पृ० १६९-१७४ (द्वितीय संस्करण)
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