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________________ ब्रह्म मेघराज शांतपुराण कथा कहूँ मनि हरषे चंग, भवियण जन ब्रह्म सांभलो भावधरी मनिरंग । सम्राट् श्रेणिक भगवान महावीर के पास जाकर प्रार्थना करता है और उनसे शांतिनाथ की कथा श्रवण करता है । इसकी अन्तिम पंक्तियाँ इस प्रकार हैं कथाकोस नहीं सांभल्यो नहि आगम नो ज्ञान, अध्यातम नहिं सांभल्यो जायो न महापुराण । भक्तिमान छे माहारो कर्माक्षय ने काज चरित्र श्री सांति जिन तणो कीधो कहे मेघराज । ' १ > ब्रह्म मेघराज II - आप भी दिगम्बर आचार्य सकलकीर्ति > भुवनकीर्ति > ज्ञानभूषण > विजयकीर्ति> शुभचन्द्र > सुमतिकीर्ति गुणकीर्ति के शिष्य थे । गुणकीर्ति के एक अन्य शिष्य वस्तुपाल की रचना सं० १६५४ की प्राप्त है अतः इनका भी समय इसी के आसपास होगा । आपने 'कोहला बारसी' अथवा 'श्रावण द्वादशी रास' इसी के आसपास लिखा है । इसकी सं० १७५४ की प्रतिलिपि प्राप्त है । इसका प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है- वीर जिनवर वीर जिनवर प्रणमुं तस पाय, तीर्थङ्कर चउवीसमो मुगति दानदातार । ते पदपंकज मनिधरी समरवी सारदा माय, श्री सकलकीरति जगि जानीये, गुरु भुवनकीरति अवतार । इसके बाद उपरोक्त गुरु परंपरा देकर कवि अपने गुरु गुणकीर्ति का सादर स्मरण करता है तेहतणा गुण मन धरी, रास रचु सुकोमाल, श्रावण द्वादशी फल वरणवं सृणो सहुबालगोपाल । ३६७ इसमें श्रावण द्वादशी व्रत का फल बताया गया है । १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ६९०-९२ (प्रथम संस्करण ) तथा भाग ३ पृ० ८९-९० ( द्वितीय संस्करण ) २ . वही, भाग ३ पृ० १०९४ - ९६ (प्रथम संस्करण) और भाग ३ पृ० २३० २३१ (द्वितीय संस्करण ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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