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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास अन्तिम पंक्तियाँ इस प्रकार हैं
अंचल गच्छे दिनदिन दीपे, श्री धर्ममूरति सूरिराया। तास तणे पखे महीयल विचरें, भानुलब्धि उवझाया रे। तास सीस मेघराज पयंपे चिरनंदो जा चंदा रे । ओ पूजा जे भणसे गणसे, तस घर होइ अणंदा रे।'
आपकी एक अन्य रचना 'ऋषभ जन्म' की प्रारम्भिक पंक्तियाँ इस प्रकार हैं
विणीय नयरी विणीय नयरी नाभि नियंगेह, अरुदेवी ऊंअरस, रायहंस सारित्य सामीय, रिसहेसर पढम जिण पढम रायवर वसह गामीय, वसह अलंकिय कणय तण, जायो जुगआधार,
तसु पायवंदी तसुतणो कहिसुं जनम सुविचार । यह रचना ऋषभदेव के जन्म कल्याणक से सम्बन्धित है । भाषा सरल मरुगुर्जर है।
ब्रह्ममेघराज I ( मेघमंडल ) आप दिगम्बर सन्त ब्रह्मशान्ति के शिष्य थे। इन्हें मेघमंडल भी कहा जाता है। इन्होंने सं० १६१७ से पूर्व 'शान्तिनाथ चरित्र' की रचना की जिसका प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है
वीर जिणवर वीर जिणवर पाय प्रणमेवि, दुखमकाल भवि जीवने दिव्यवाणि प्रतिबोध दीघो,
आयु कर्म सत्तरि हुई बरसकाल हूइ गयो सिधो। दुहा-सरसति स्वामीणी वीनवू दीगम्बर गुरुराय,
परम गुरु वलि समरिसु, शान्त ब्रह्म तणां पाय । इसमें नाना प्रकार की देशी रागों का प्रयोग किया गया है जिन्हें कवि ने भास कहा है, जैसे-'भास १ जसोधरनी' १. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० ४६७-६८ और भाग ३ पृ० ९४१ (प्रथम
संस्करण) ३ पृ० १६४-६५ (द्वितीय संस्करण) २. वही, भाग ३ पृ० ६९०-९२ (प्रथम संस्करण) भाग २ पृ० ८९-९०
(द्वितीय संस्करण)
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