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'सोलसतीभास'- - इसमें जिनदत्त की पुत्री सती सुभद्रा का चरित्रचित्रित है । यह रचना शीलोपदेश कथा पर आधारित है, यथा—
मेघराज
श्री शीलोपदेश मालादिक ग्रंथे सोलसती गुण कहीओ जी, भगतां गुणतां जेहने नामे अष्ट महासिद्धि लहीइ जी ।
'ज्ञातासूत्र १९ अध्ययन संज्झाय' - संज्झाय संग्रह में प्रकाशित है । इसका आदि
वीर जिणेसर वांदो विगतिस्यूंजी प्रणमीगोतम पाय । थविस् हर्षे हु ऋषि राजियोजी मेघकुमर भले भाय । ' राजप्रश्नीय उपांग बालावबोध का प्रारम्भ इस श्लोक से हुआ हैदेवदेवं जिनं नत्वा श्रुतदेवी विशेषतः,
राजप्रश्नीय सूत्रस्यवार्तिक प्रद्द्याम्यहं ।
यह रचना सं० १६७० के आस-पास लिखी गई । साधु समाचारी की रचना राजचंद्रसूरि के समय सं० १६६९ में हुई । क्षेत्र समास बालावबोध की रचना सं० १६७० में बताई गई है । इन गद्य रचनाओं का उद्धरण उपलब्ध न होने से तत्कालीन गद्य शैली तथा गद्य भाषा का स्वरूप समझने की सुविधा सुलभ नहीं हो पाई ।
मेघराज II – अंचलगच्छीय धर्ममूर्तिसूरि के प्रशिष्य एवं भानुलब्धि के शिष्य थे । अंचल गच्छ की पट्टावली में धर्ममूर्तिसूरि ६३ वें पट्टधर हैं । इन्हें सं० १६०२ में आचार्य और गच्छ नायक पद प्राप्त हुआ था तथा सं० १६७० में इनका देहावसान हुआ था । अतः मेघराज का रचनाकाल भी यही होगा । आपने 'सत्तर भेदी पूजा' लिखी जो 'विविध पूजा संग्रह' में प्रकाशित है ।
इसका प्रारम्भ इन पंक्तियों से हुआ है
सर्व्वज्ञं जिनमानम्य नत्वा सद्गुरुमुत्तमं
कुर्व्वे पूजाविधि सम्यक्भव्यानाम् सुखहेतवे । वंदी गोयम गणहरे समरं सरसति ओक,
कवियण वर आपे सदा, वारे विघन अनेक ।
१. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ६७-६८ तथा पृ० ३७२ (द्वितीय संस्करण ) -
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