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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास नलदमयन्तीरास--आनन्द काव्य महोदधि मौक्तिक ७ में प्रका'शित है। आदि--नगर निरुपम गजपुरे श्री विश्वसेन नरिंद,
अचिरा राणी उरवरे आव्या श्री शांतिजिणंद । सेवा करता जेहनी रे सम्पदा परगट हई,
देवी दवदंती तणी रे आपदा दूरे गई। रचनाकाल--
सरवण ऋषि जगे प्रगटियो महामुनि जी कीधुं उत्तमकाज, ते सही गुरुना चरण नमी कहे जी, वाचक श्री मेघराज । संवत सोल चउसठ संवच्छरे थवीओ नल ऋषिराज, भणजो गणजो धर्म विशेष जो जी, सारता वांछित काज ।'
राजचन्द्र प्रवहण या संयम प्रवहण (सं० १६६१ खंभात)- इसमें राजचंद्रसूरि के साधु जीवन तथा संयम आदि का वर्णन किया गया है । प्रारम्भ देखिये--
रिसहु जिणेसर जगतिलउ नाभि नरिंद मल्हार,
प्रथम नरेसर प्रथम जिन त्रिभुवन जग साधार । इसका अंतिम पद रागधन्यासी में आबद्ध है, उसकी कुछ पंक्तियाँ देखिये
गछपति दरिसणि अति आणंद, श्री राजचंद सूरिसर प्रतपउ जा लगि हुं रविचंद । संयम प्रवहण मालिम गायउ नयर खम्भावत मांहि ।
संवत सोल अनइ इकसठइ आणी अति उछाह ।' "गुरुभास' की अन्तिम पंक्तियाँ इसी के साथ प्रस्तुत हैं
नयर जोधाणइं सोम सुणी वली नागोर नगीनइ पूजा घणी, सानिधि कर उ पूजा संघ तणी
मुनि मेघराज भावइ सुखलाभ गणी ।। १. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० ४०१-२, भाग ३ पृ० ९००-१, भाग ३
खंड २ पृ० १६०३-४ (प्रथम संस्करण) २. डा० हरीश शुक्ल -जैन गुर्जर कवियों की हिन्दी सेवा पृ० १२१ ३. डा० प्रेमसागर जैन--हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि पृ० १४२ ४. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ६७-६८ तथा पृ० ३७२(द्वितीय संस्करण)
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