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________________ मेघनिदान यह रचना 'जैनप्रबोध' पुस्तक के पृ० ३२०-२६ पर प्रकाशित है। इसका प्रारम्भ इन पंक्तियों से हुआ है केवलनाणि श्री निरवाणी, सागर महाजस विमल ते जाणी। सर्वानुभूति श्रीधर गुणखाणी, दत्त दामोदर वंदो प्राणी। भाषा से अनुमान होता है कि मूलावाचक सुबोध एवं सुपठित ऋषि थे। इनकी भाषा में तत्सम शब्दों की अधिकता और प्रासादिकता है। मेघनिदान---आप खरतरगच्छ की भावहर्षी शाखा के आचार्य जिनतिलकसूरि के प्रशिष्य एवं रत्नसुन्दरसूरि के शिष्य थे। इन्होंने जिनोदयसूरि के आदेश से सं० १६८८ में 'क्षुल्लककुमारचौपइ' की रचना तिवरी में की। इसके अतिरिक्त तिंवरी पार्श्व स्तवन, जोधपुर पार्श्व स्तवन, नाकोडा पार्श्व स्तवन> आदि भक्तिभावपूर्ण स्तवन भी आपने लिखे हैं। (वाचक)मेघराज--आप पावचन्द्र >समरचन्द्रराजचन्द्र>श्रवण ऋषि के शिष्य थे। आप उत्तम कवि के साथ अच्छे गद्य लेखक भी थे। आपने 'राजचंद्र प्रवहण' नामक काव्य (सं० १६६१) अपने दादा गुरु की स्तुति में लिखा था। इसके अलावा 'नलदमयंती रास सं० १६६४, सोलसती भास' अथवा संज्झाय, ज्ञातासूत्र १९ अध्ययन पर संज्झाय अथवा भास आदि प्रमुख रचनायें उपलब्ध हैं। आपने पार्श्वचंद्र स्तुति अथवा सलोका और सद्गुरु गीत या भास नामक रचनायें गुरुओं की भक्ति पर आधारित करके लिखी हैं। गद्य में आपने राजप्रश्नीय उपांग बालावबोध, समवायांगसूत्र बालावबोध, उत्तराध्ययनसूत्र बालावबोध, औपपातिकसूत्र बालावबोध, साधु समाचारी और लघुक्षेत्र समास बालावबोध आदि अनेक महत्त्वपूर्ण रचनायें की हैं। नलदमयन्तीरास और ज्ञातासूत्रभास प्रकाशित रचनायें हैं। आगे इनका विवरण-उद्धरण प्रस्तुत किया जा रहा है। १. श्री अगर चन्द नाहटा-परम्परा पृ० ८९; जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० १५१९ (प्रथम संस्करण) तथा भाग ३ पृ० २७९ (द्वितीय संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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