SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 381
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३६२ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास यह रचना राजसागरनाम पड़ने से पूर्व अर्थात् १६८६ में सूरिपद प्राप्त करने से पूर्व लिखी गई होगी। सूरिपद प्राप्त करने के पश्चात् की लिखी इनकी कोई रचना मुझे नहीं मिली। मूलावाचक--अञ्चलगच्छ के धर्ममूर्ति सूरि के शिष्य रत्नप्रभ आपके गुरु थे। आपकी दो रचनायें उपलब्ध हैं जिनका विवरण प्रस्तुत है। गज सुकुमाल संधि अथवा चौपाई (१३४ कड़ी, सं० १६२४ फाल्गुन शुक्ल ११, सांचौर) की प्रारम्भिक पंक्तियाँ देखिये पणमिय वीर जिणेसर स्वामि, हई नवनिधि जस लीधइ नाम, स्वामी तणा पंचम गणधार, सोहम स्वामि करई विहार । रचनाकाल संवत सोल चउबीसा वरस इं, फागूण सूदि इग्यारसि दिवसइं। साचउर मंडण वीर पसाइं, अलीय विधन सवि दूरइ जाइ । अञ्चल गच्छ के धर्ममूर्ति और वाचक रत्नप्रभ का नामस्मरण करने के पश्चात् कवि कहता है-- तास सीस ऋषि मूलइ कीध, गज सुकुमाल तणी मे सन्धि । ओह संधि से भणइ भणाबइ, ऋद्धि वृद्धि तस मंदिर आवइ ।१३४। इस प्रकार यह चौपइ १३४ चौपाई छन्दों में निर्मित है। इसमें गजसुकूमाल की कथा का वर्णन किया गया है। आपकी दूसरी रचना [शाश्वताशाश्वत जिन अथवा वृद्ध] चैत्यवंदन (८ ढाल) को श्री देसाई ने जैन गुर्जर कविओ के भाग ३ पृ० ७१० पर रत्नप्रभ शिष्य के नाम से दिखाया था किन्तु उसी भाग में सुधार कर पुनः पृष्ठ ९४१-४२ पर मूलावाचक के नाम से दिया गया है। वस्तुतः यह रचना वाचक रत्लप्रभ के अज्ञात शिष्य की न होकर रत्नप्रभ के शिष्य मूलावाचक की ही है, जैसा इसकी अन्तिम पंक्तियों से स्पष्ट है, यथा-- गच्छ विधिपक्ष पूज्य परगट श्री धर्ममूर्ति सुरिंदुओ, वाचक मूला कहे भणतां ऋद्धि वृद्धि आणंदुओ।" १. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० ४६८-६९, भाग ३ पृ० ७१० तथा ९४१ ९४२ (प्रथम संस्करण) भाग २ पृ० १३७-१३८ (द्वितीय संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy