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मरु - गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
युगप्रधान जिनचंद्र सूरि, जिनसिंह सूरि, हर्षचन्द्र, हर्षप्रमोद का उल्लेख करके कवि ने लिखा है
तास शिष्य मुनिकीर्ति इम भणे मनिधर अधिक प्रमोद | रचनाकाल - संवत सोल व्यासी सम विजयदसमी गुरुवार, सांगनेर नगर रलीयामणो पभणे अहविचार । इसकी प्रारम्भिक पंक्तियाँ भी उदाहरणार्थं प्रस्तुत हैं
नाभिरायनंदन नमुं शांति नेम जिन पास, महावीरचउवीसमो प्रणम्यां पूरे आस । धर्मे किया धन संपजे ओपम अछे अनेक, पुण्य थकी पुन्यसारनो सुणमो अति सुखरेख । '
मुनिप्रभ - आप खरतरगच्छ के प्रसिद्ध आचार्य युगप्रधान श्री जिनचंद्रसूरि के शिष्य थे । आपने सं० १६४३ में दान-धर्म के माहात्म्य से सम्बन्धित रचना 'गजभंजन चौपइ' बीकानेर में लिखी । इसमें कुल २०३ गाथायें हैं । आपके गुरुभाइयों में समयप्रमोद, समयराज, हर्षवल्लभ, सुमति कल्लोल, धर्मकीर्ति, जिनसिंह सूरि और जिनराज सूरि आदि विशेष उल्लेखनीय हैं। गजभंजन चौपइ का उद्धरण उपलब्ध न होने से इनकी काव्यक्षमता एवं भाषाशैली का नमूना नहीं प्राप्त हो सका ।
मुनिशोल - आंचलगच्छ के विद्याशील > विवेकमेरु आपके गुरु थे । आपने सं० १६५८ माह वदी ८ को 'जिनपाल जिनरक्षित रास' लिखा जिसकी कुछ पंक्तियाँ उदाहरणार्थ प्रस्तुत हैं
श्री अञ्चलगच्छ सुहगुरु सुरतरु सारिखाजी, श्री धरमम्रति सूरि, ते सहगुरुना चरणकमल निति वांदीइजी, दोहग जाई दूरि ।
रचनाकाल
करि शर रस इंदु मास कुमारइ सलही जी, बहुल आठमि दिनचार, सन्धि रची अ संघ तणइ आग्रह करोजी रवि शशि नयरमझार ।
१. जैन गुर्जर कविओ भाग पृ० ३७९-८० (द्वितीय संस्करण ) २. श्री अगरचंद नाहटा - राजस्थान का जैन साहित्य पृ० १७५
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