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________________ ३५८ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास सय गुणपूरि भ नमियइ खयई दो। नर बिनु अवगुण क्या करइ इकु अकेली नारि, ताली अक न बाजइ चित्त बहु माल विचारि । बावन अक्षर सार यहु दान सील उपगार, कीजइ माल सफल जनम नरनारी अवतार ।' 'सत्य की संबंध' (४२६ कड़ी) का आदि देखिये अतिसय गुणपूरि तरिकत त्रिगुणातीत अनंत, चिदानंदमय माल प्रभु नमियइ नितु भगवंत । नरभव लहि रे माल अब कला सीखियइ दोइ, सुखआजीवी जीवतां मुझे न दुर्गति होइ । कीर्तिधर सुकोशल संबंध (४३१ कड़ी)-इसकी प्रारम्भिक पंक्तियाँ निम्नांकित हैं श्री आदीश्वर जगत गुरु, संभु विधाता रूप, पुरुषोत्तम कहि बुद्ध प्रभु भावइ भावना भूप । ऋषिमंडल प्रकरण कह्या जती दुविधनि ग्रंथ, माल तृकाल नमइ तिन्हइ साधई जे सिवपंथ । अंत-धन्य कीर्तिधर मुनिवर गाइयइ रे, श्री जिनशासन मांहि सीधार, धन्य सुकोशल वंध्यइ रे, अनुमोदतां न्यानादिक पइयइ रे ।' इसके अलावा वैराग्य गीत, भमरा गीत आदि का भी परिचय दिया गया है। अतिशय विस्तार भय के कारण सभी रचनाओं के विस्तृत विवरण एवं उद्धरण देना संभव नहीं है किन्तु जो थोड़ी सी झलक प्रस्तुत की गई है उससे यह अवश्य विदित हो गया होगा कि मालदेव १७वीं शताब्दी के प्रतिभाशाली काव्यगुणसम्पन्न महाकवि थे। मालमुनि-श्री मो० द० देसाई ने जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० ४६३-६४ और भाग ३ पृ० २८-२९ पर इनकी रचना 'अंजना सती रास' (१५४ कड़ी) को १९वीं शताब्दी में दिखाया था, परन्तु बाद में भाग ३ पु० ९३८ पर इसका सुधार करके रचनाकाल सं० १६६३ से पूर्व बताया है। इनकी गुरुपरंपरा आदि का पता नहीं चल पाया है किन्तु ये मालदेव से भिन्न हैं । इसकी प्रारम्भिक पंक्तियाँ देखिये १. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० ६६ (द्वितीय संस्करण) २. वही भाग ३ पृ० ३६२ (द्वितीय संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org..
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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