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________________ मालदेव ३५७ विजय के लिए नेमिनाथ को पर्वत पर तप करना पड़ा उसे स्थूलभद्र ने कोशा वेश्या के घर रहकर जीत लिया, यथा - नेमिनाथ परबत लीइ, काम सुभट येणि जीतु रे, थूलभद्र कोशा घरे, साध्यु मदन वदीतु रे । रचना का अन्त - संगति टालु रे, महाव्रत पालु मालदेव मुनि वीनवइ नारी थूलिभद्र मुनि नी परि, शील यही इस कथा का सार उपदेश है। नारी आसक्ति से मुक्त होकर शील का पालन करना ही मुक्ति का मार्ग है। आपकी भाषा प्राचीनता की रूढ़ि से मुक्त, प्रसाद गुण सम्पन्न है । आप १७वीं शताब्दी के समर्थ कवि हैं । ये कोरे धर्मोपदेशक नहीं, अपितु दुरूह दुहरे दायित्व का निर्वाह करने वाले प्रतिभाशाली साहित्यकार थे जिनका साहित्य रस के साथ भक्ति और निर्वेद का संदेश देने में सक्षम है । राजुलमि धमाल ६५ कड़ी सं० १६५९ से पूर्व की परम मार्मिक रचना है इसका आदि देखिये -- रे । समुद्रविजय के लाडीला, तोरणतइ किउ न जाई रे, मरेउ को अवगुण वस्यो, प्रीय तेरइं मन माही मेरे प्राण पीयो रे नेमजी । अंत - मुकति जाई दोइ मिले, राजुल अरु जदुराया रे, जगि जसु जिनकउ गाइयउ, माल नमइ नित पाया रे । नेमिनाथ पर दूसरी रचना नेमिनाथ नवभवरास २३० कड़ी आदि Jain Education International श्री नेमीश्वर जिन तणां नवभव कहउं चरित्र, तीर्थंकरं गुण गावतां मनतन होइ पवित्र । को सिगार कथा कहइ को गावइ जिनराइ, कडुवइ किसती कहुं रुचइ किसही मधुर सुहाय । अंत - लहिन्यां नकेवल तिहां सीधा, माल नवई त्रिकाल अ; गावतां नवभव नेमि रासउ पुन्य हुइ दुख टाल अ । शील बत्तीसी और शील बावनी भी शील पर आधारित रचनायें हैं । शील बावनी की अंतिम पंक्तियाँ इस प्रकार हैं For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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