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मालदेव
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भाषा में सुभाषित प्रयोग देखियेसरस कथा जो होय तो सुनहि सबहि मनलाय,
ज्यों सुबास होवे कुसुम, मधुप तहाँ ही जाय । मीठा भोजनशुभवचन मीठा बोली नारि,
सज्जन संगति माल कहे, किसहि प्यारेच्यार । मुओ सुत खिण इक दहे, बिनु जायो फुनि तेउ,
दहे जन्म लगु मूढ़ सुत सो दुख सहीइकेउ । विक्रम पंच दंड कथाराजा विक्रम कई चरितु सभा लोक अ सर्व,
सुणहुलाइ करि श्रवणमन माल न मांगै दव्व । कलिजुगि हुय उविक्रम बड़उ राजा नृपति सिरमौर;
जिणिसंवच्छर आपणो कीयो जगिरे कोइ न और । विक्रम चरित कथा कही बड़गच्छ गछ भूपाल,
भावदेव सूरिंद शिष्य कहइ इमरे सेवक मुनि माल । देवदत्त चौपइ आदिश्री जिनवर मुख वासिनी श्रुत देवी महमाइ,
तसु पसाइ कविता करउं सुनहु चतुरमनलाइ । कवि को अपनी सरस कथा की लोकप्रियता पर विश्वास है, वह कहता हैवस्तु भली जइ आपणी ग्राहक तउ जग होइ,
खोटउ नाणउ आपणउ तउतस लेइ न कोइ। जउ कवि सरस कथा कहइ तउ नर सुणहिं अनेक,
पणि विरलउ को माल कहइ मिलइ चतुर सविवेक ।' पद्मरथ चौपइ सं० १६७६ से पूर्व लिखी गई। यह शील के विषय में रचित है। सुरसुन्दरी चौपइ सं० १६९० से पूर्व और मालदेव शिक्षा चौपइ भी इसी के आसपास की रचना है।
स्थूलिभद्र फाग अथवा धमाल (१०७ कड़ी) सं० १६५० से पूर्व लिखी गई उनकी प्रसिद्ध एवं प्रकाशित रचना है। यह 'प्राचीन फागु
१. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० ५५-६६ तथा भाग ३ पृ० ३६२
(द्वितीय संस्करण)
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