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________________ ३५२ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास सकल मनोरथ पूरवा सुरतरु (पाठा० समर्थजो) सांचो, शान्ति जिणेसर देव देखी, मन मोहि नाचो। शांति जिणेसर सोलमा ओ तेहना प्रणमी पाय, भगतिभाव आणी घणो कहस्युं गुरु संझाय । गुरु परंपरा में हीरविजयसूरि से लेकर विजयसेन> बुद्धिसागर तक का उल्लेख है, यथा महियल मांहि मुनिपति मे प्रतपो कोडिवरीस, मानसागर कवि हम कहइ बुद्धि सागर गुरु सीस ।' मालदेव-आप खरतरगच्छीय आचार्य भावदेव सूरि के शिष्य थे। इस गच्छ की गद्दी बीकानेर राज्य के भटनेर (आधुनिक हनुमानगढ़) में थी। वाचक मालदेव उच्चकोटि के कवि थे। इन्होंने संस्कृत और प्राकृत में भी ग्रंथ रचना की है किन्तु मरुगुर्जर की रचनायें संख्या और स्तर की दृष्टि से विशेष महत्वपूर्ण हैं। इनकी एक रचनापुरंदर चौपइ तो अत्यधिक प्रचारित है। इनकी भाषा में गुजराती की अपेक्षा पंजाबी शब्दों का प्रयोग भी कम नहीं मिलता क्योंकि इन्होंने गुजरात की तुलना में पंजाब में अधिक विहार किया था । अतः इनके शिष्य पंजाब और सिन्ध में अधिक हुए। इनकी अधिकतर रचनायें कथात्मक हैं। उनमें सुभाषितों का सुन्दर प्रयोग मिलता है । अनेक परवर्ती कवियों ने उन्हें अपनी रचनाओं में उद्धृत किया है जैसे जयरंग कवि ने सं० १७२१ में रचित अपनी कृति 'कयवन्नारास' में मालदेव के सुभाषितों का प्रचुर प्रयोग किया है, यथादुसह वेदन-विरह की सोच कहे कवि माल, जिनकी जोड़ी विछड़ो तिणकाकवण हवाल। इनकी अधिकतर रचनाओं में रचनाकाल और स्थान नहीं दिया गया है पर ये अधिकतर भटनेर के आस-पास ही रहे। वीरांगद चौपइ में रचना समय सं० १६१२ दिया है। अतः इनकी अन्य रचनायें भी इसी के आस-पास रची गई होंगी। इनकी रचनाओं के सम्बन्ध में श्री अगरचन्द नाहटा ने शोधपत्रिका उदयपुर में दो लेख १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० १५४० (प्रथम संस्करण); भाग २ पृ० २८८ (द्वितीय संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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