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मानसागर
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गुरुपरंपरा -- देवानन्द गछि गुरु जाणि श्री महेश्वर सूरि प्रगटप्रमाणि, तेह श्री गुरु पसाई करी, रच्यो रास मनि ऊलट धरी । '
माधवदास -- आपके पिता का नाम चारण सुखदेव था । आपने ' रामरासो' लिखा है जिसकी भाषा हिन्दी है । इसमें श्रीरामचंद्र का चरित्र वर्णित है । प्रारम्भिक पंक्तियाँ देखें
ॐ ॐकार अपार अनन्त, अन्तरजामी जीव अनन्त, आप भगत वरदान अनन्त, अहं प्रणाम मनेव अनन्त । सरस्वती वंदना की भाषा देखिये -
हंसा गमने ब्रह्माणी हंसारूप हंस आरूढ़ा, दंवर गुणवर वाणी, नध वाणी देवतभ्योनमं ।
कवि ने कृष्ण व्यास (द्वैपायन) वाल्मीकि, सुखदेव आदि का सादर स्मरण किया है । कुछ उदाहरण
कृसन व्यास जामदेव कवि वाल्मीक सुखदेवअन,
हा - रासो जस श्री राम से बदे विदुख सुखवेद,
किव गरु सख्य अहं, भाव छंद गुणभेव ।
नट मरकट जिम नाचवे मंत्री मंत्र जेव,
करणकुकवि जांणे कसो, रमसे किविसुं भेद |
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सोरठा-वाचे जे वाखाण रातोपि श्री राम रस,
लखियु दास कल्याण कथीयो माधवदास कवि । आप जैनेतर चारण राजस्थानी कवि हैं । मिश्रबन्धु विनोद में आपका कविता काल सं० १६६४ दिया गया है ।
कहिया तिम तमे कथे, हासणउ दुख सदेव ।
मानसागर – तपागच्छ के आचार्य बुद्धिसागर आपके गुरु थे । आपने "गुरु ( गुरुकुल वास) स्वाध्याय " ( १६ छप्पय ) विजयसेनसूरि के सूरिकाल में अर्थात् सं० १६५२ से ७२ के बीच लिखा । इसका आदि इस प्रकार है
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१. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ७३१ (प्रथम संस्करण ) भाग २ पृ० १५७-५८ (द्वितीय संस्करण )
२. वही, भाग ३ खंड २ पृ० २१४८ (प्रथम संस्करण )
३. मिश्रबन्धु विनोद, पृ० ४०९
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