SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास नंगे पाव चुपचाप परिक्रमा करती तथा अपरिवर्तित किन्तु मधुर स्वर में भजनों का पाठ करती रहती हैं । मूर्तिकला--मुसलमानी काल में मूर्तिकला का ह्रास होना स्वाभाविक था क्योंकि वे बुतपरस्ती के सख्त खिलाफ थे बल्कि मूर्तिभंजक थे। इसलिए इसके विकास या इसमें किसी साझी शैली के प्रादुर्भाव का प्रश्न ही नहीं उठता। चित्रकला-चित्रकला का इस काल में उल्लेखनीय विकास हुआ। अकबर के दरबार में अनेक हिन्दू-मुसलमान चित्रकार रहते थे। इनके द्वारा बावरनामा, महाभारत, अकबरनामा आदि ग्रन्थों का चित्राङ्कन कराया गया। अकबर ने इन चित्रकारों से अपना तथा अपने दरबारियों का चित्र बनवाया; कपड़ों के परदों और दीवारों पर भी सुन्दर चित्रकारी कराई। इसके चित्रकारों में अब्दुलसमद, फर्रुखवेग, जमशेद, यशवन्त, वसावन, मुकुन्द, हरिवंश और जगन्नाथ आदि उल्लेखनीय हैं । जहाँगीर ने चित्रकला में विशेष रुचि ली, उसके समय में चित्रकला की अनेक नई कलमें विकसित हुई जैसे राजपूतकलम, मुगलकलम, पहाड़ी कलम आदि। इन चित्रकारों ने धार्मिक पुस्तकों, पौराणिक प्रसंगों, प्रमुख अवतारों, महापुरुषों और वीरों का चित्र बनाया। इस समय के चित्रों में विविध प्राकृतिक दृश्यों, पशु-पक्षियों, फलपत्तों के अलावा स्त्रीपुरुषों की नाना आकृतियों और भावभंगिमाओं के मोहक अंकन हुए हैं । ___ संगीत-संगीत का प्रेमी तो बाबर भी था किन्तु उसके तथा उसके बेटे हुमायूं के नसीब में संगीत का सुख नहीं बदा था। अकबर को सुख शान्तिपूर्वक लगभग पचास वर्ष शासन करने का सुअवसर मिला। उसमें कलात्मक अभिरुचि भी थी और शौक पालने की सामर्थ्य भी थी। इसलिए उसके शासन काल में अन्य कलाओं के साथ संगीत का भी चरमोत्कर्ष हुआ। इसके दरबारी संगीतज्ञ सात टोलियों में विभक्त थे। सप्ताह में एक-एक दिन सम्राट हर टोली के संगीत का स्वाद लेता था। भारतीय, ईरानी, तूरानी, काश्मीरी आदि विविध प्रकार की शैलियों के संगीतज्ञ उसके आश्रित दरबारी कलाकार थे। इनमें तानसेन का नाम सर्वविदित है जिन्होंने अनेक नवीन रागरागिनियों का प्रारम्भ किया था। उनके सम्बन्ध में अबुलफजल का कथन है कि भारत में पिछले एक हजार वर्षों में ऐसा महान् संगीत१. डॉ० राधाकमल मुखर्जी-भारत की संस्कृति और कला पृ० २७६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy