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उपोद्घात की कलायें पर्याप्त उन्नत हो चुकी थीं। यहाँ की वास्तुकला देखकर आगन्तुक मुसलमान चकित रह गये थे। उनके आने के बाद हिन्दमुस्लिम वास्तुकला की मिश्रित शैली विकसित हुई, जैसे दिल्ली शैली, जौनपूरी शैली और गुजराती शैली आदि । राजस्थान और गुजरात के हिन्दू वास्तुकारों ने हिन्दू और जैन कला की अनुपम इमारतें बनाईं। अकबर की बनवाई ईमारतों में हिन्दू-ईरानी वास्तुकला के साथ जैन और बौद्ध वास्तुकला की शैली का भी संयोग दिखाई पड़ता है। आगरे का किला, दीवान-ए-आम, जहाँगीरी महल, फतेहपुर सीकरी की इमारतें, जोधाबाई का महल, जामा मस्जिद, बुलन्द दरवाजा, बौद्ध विहारों की शैली पर बना पंचमहला तथा शेखसलीम का दरगाह आदि उसकी उल्लेखनीय इमारतें हैं। अकबर के एकथंभिया महल फतेहपुर सीकरी का वर्णन देवविमल गणि ने 'हीरसौभाग्यकाव्य' के १०वें सर्ग के ७५वें छन्द में किया है। अकबर ने इलाहाबाद का किला ईरानी वास्तुकला के आधार पर बनवाया था।
जहाँगीर स्थापत्यकला का अधिक शौकीन नहीं था किन्तु चित्रकला का वह मुगलबादशाहों में बेजोड़ ज्ञाता और आश्रयदाता था। अतः उसके समय में कोई विशेष उल्लेखनीय इमारत नहीं बनी। वास्तुकला का सबसे अधिक शौकीन शाहजहाँ था। उसके समय में मोती मस्जिद, दिल्ली का लालकिला, जामा मस्जिद आदि का निर्माण हुआ। उसका बनवाया 'ताजमहल' अपनी कलात्मकता के लिए विश्व विख्यात है। अपार सम्पत्ति होने के कारण उसने भवनों की अलंकृति और साजसज्जा पर बड़ा ध्यान दिया। इसी समय से आलंकारिक शैली का वास्तुकला में भी प्रारम्भ हो गया। हिन्दू राजाओं ने एलौरा में गुफा मन्दिर बनवाये । इस काल में बने कुछ जैन मन्दिर भी वास्तुकला के उत्कृष्ट नमूने हैं। शत्रुञ्जय का वर्णन सुप्रसिद्ध इतिहासकार फार्वेस ने भी किया है। यहाँ के प्रत्येक पथ और प्रत्येक चौराहे पर जैनधर्म के अनुपम मन्दिर मौजूद हैं। प्रत्येक मन्दिर में आदिनाथ, अजितनाथ, पार्श्वनाथ आदि तीर्थङ्करों की भव्य मूर्तियाँ प्रतिष्ठित हैं। फार्वेस लिखता है "मूर्तियों के प्रस्तरीय अंगउपांग, जिनमें परम शान्ति का भाव है, चाँदी के लैम्पों की धीमी रोशनी में धुंधले-धुंधले दीखते हैं। हवा में धूप की सुगन्धि भरी होती है तथा लाल व सुनहले वस्त्र पहने हुए उपासिकायें चिकने फर्श पर
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