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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास सदमें लगे। उसका पूत्र मुराद अतिशय सुरापान से मर गया। उसका दूसरा पुत्र दानियाल दुश्चरित्र था, वह भी अकबर के जीवन काल में ही मर गया। सलीम ने पिता के खिलाफ विद्रोह किया, किन्तु अन्त में वही बच रहा था इसलिए अन्तिम वर्षों में अकबर को बड़ा मानसिक क्लेश था। उसका प्रिय मित्र बीरबल यूसूफजाइयों के युद्ध में मारा गया था और अबुलफजल को वीरसिंह ने मार डाला। इस प्रकार बुढ़ापे में अकबर एकाकी हो गया। वह चिन्तित रहने लगा, बीमार पड़ा और सं० १६६२ में मर गया। अकबर की मृत्यु के बाद शाहजादा सलीम २४ अक्टूबर सन् १६०५ (सं० १६६२) में जहाँगीर के नाम से दिल्ली की गद्दी पर बैठा । जब आगरा के किले में उसका राज्यारोहण हुआ तब वह ३६ वर्षे का था। सर्वप्रथम उसने शेर अफगन का वध करके अपनी पूर्वप्रेयसी मेहरुन्निसा को हस्तगत किया और उसे नरजहां के नाम से साम्राज्ञी बनाया। जहाँगीर के जीवनकाल में शासनसत्ता वस्तुतः इसी के हाथ में रही। जहाँगीर बड़ा विलासी था लेकिन अकबर के समय का दबदबा ऐसा बना हुआ था कि इसकी विलासिता के कारण शासन प्रबन्ध में कोई विशेष अव्यवस्था नहीं उत्पन्न हुई। इसने जनता को न्याय सुलभ कराने के लिए एक जंजीर में घंटा लटकवा दिया था जिसे खींचकर कोई भी किसी समय सम्राट के पास न्याय की गुहार लगा सकता था। इसके पुत्र खुसरो ने विद्रोह किया किन्तु उसे दबा दिया गया । नूरजहाँ के विरुद्ध खुर्रम ने भी विद्रोह किया पर वह भी दबा दिया गया। पुर्तगालियों के साथ अंग्रेजों की ईस्ट इण्डिया कम्पनी को भी भारत में व्यापार की सुविधा देना इसके शासन काल की प्रमुख घटना थी। सं० १६८४ में जहाँगीर की मृत्यु हुई। यह जैन धर्म के प्रति उदार था। चित्रकला का शौकीन तथा मर्मज्ञ था। इसके शासन काल में शृङ्गार और विलासिता की प्रवृत्ति बढ़ी, फलतः दरबारी कलावन्तों और साहित्यकारों की रचनाओं में शृंगार और विलास के मादक चित्र उकेरे जाने शुरू हो गये। जहाँगीर के बाद शाहजहाँ के समय में साहित्य और कला के क्षेत्र में एक नये शृंगार-युग का सूत्रपात हुआ और भक्तिकाल का अवसान हो गया। कला एवं साहित्य की स्थिति वास्तुकला-मुसलमानों के भारत आगमन से पूर्व ही हमारे देश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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