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________________ उपोद्घात राजा बना दिया और उसका नाम राजा बीरबल रख दिया। इस लिए धार्मिक सहिष्णुता और पारस्परिक सौहार्द्र के वातावरण में सांस्कृतिक समन्वय का कार्य उसके समय में सुगमता से सम्पन्न हो सका। फिर विभिन्न जातियों, भाषाओं, परम्पराओं और विश्वासों वाले भारत देश के इतिहास का प्रमुख स्वर ही सांस्कृतिक समन्वय का रहा है। डा० राधाकमल मुखर्जी ने ठीक ही कहा है कि अक्सर लोग यह भूल जाते हैं कि भारत अपने विकास के पाँच हजार वर्षों के काल में से सैतीस सौ वर्षों तक स्वाधीन रहा है । यह समय भारत की दासता के समय से (मध्य और आधुनिक युगों में दासता का काल केवल साढ़े छः सौ वर्ष है) बहुत अधिक है"' । इसलिए जब शासन की तरफ से सुविधा हई तो यह प्रक्रिया तीव्र हो गई। जैसा पहले कहा जा चुका है कि बाबर से लेकर अकबर तक के राज्यकाल में विभिन्न हिन्दू सम्प्रदायों और सूफी पंथों के बीच आध्यात्मिक प्रेम की लाक्षणिकता और चिन्तन क्रियाओं का खूब आदान-प्रदान हुआ जिसके फलस्वरूप अकबर के समय सांस्कृतिक एवं धार्मिक तादात्म्य तथा समन्वय स्थापित हो सका था। अकबर की उदार और समन्वयवादी नीति ने भारत की चिराचरित समन्वयवादी प्रवृत्ति को बड़ा प्रोत्साहन दिया। वह हर धर्म के विद्वानों, सन्तों, धर्माचार्यों की बातों में समन्वय स्थापित करना चाहता था। 'तबकाते अकबरी' से मालूम होता है कि अकबर विद्वानों को प्रोत्साहन, संरक्षण एवं पुरस्कार देता था। फैजी, अवुलफजल, कादिर बदायूनी, गंग आदि का नाम उक्त ग्रन्थ में उल्लिखित है। मुगलकालीन भारतीय समाज और संस्कृति पर इस्लाम का प्रभाव स्वाभाविक था क्योंकि राजा काल का कारण कहा गया है (राजा कालस्य कारणम्) । उसी प्रकार भारतीय जनजीवन का प्रभाव मुस्लिम समाज पर भी पड़ना अवश्यम्भावी था। इस प्रकार दोनों जातियों ने एक दूसरे से बहुत कुछ सीखा, ग्रहण किया और दोनों के संमिश्रण से एक नई सभ्यता, संस्कृति उभरने लगी जिसे इतिहासकारों ने भारतीयमुसलमानी संस्कृति (Indo Muslim Culture) या सांझी संस्कृति कहा है। जहाँगीर--अकबर के जीवन का दमकता हुआ सूर्य अन्ततः अस्ताचलगामी हुआ। उसके जीवन के अन्तिम काल में उसे कई १. डॉ० राधाकमल मुखर्जी-भारत की संस्कृति और कला पृ० ३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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