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________________ ३४८ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास ___ अहदास प्रबंध मेड़ता के कपूरचंद चोपड़ा के आग्रह पर लिखा गया। रसमंजरी का कोई उद्धरण नहीं मिला। महिम सुन्दर-आप खरतरगच्छीय साधुकीर्ति के शिष्य थे। आपने सं० १६५६ में 'नेमि विवाहला' (गाथा ३०१) की रचना सरसामें की। सं० १६६९ में आपने 'शत्रुञ्जयतीर्थोद्धारकल्प' (गाथा ११६) की रचना जैसलमेर में की। श्री नाहटा ने नेमिविवाहलो का रचनाकाल सं० १६५६ और श्री देसाई ने सं० १६६५ बताया है ।२ उद्धरण या अन्य प्रमाण दोनों सज्जनों ने नहीं दिया है इसलिए यह निर्णय करना कठिन है कि किस सज्जन की तिथि मान्य है। इनकी दूसरी रचना 'शत्रुञ्जय तीर्थोद्धारकल्प' का विवरण-उद्धरण श्री देसाई ने दिया है :जिसे संक्षेप में आगे दिया जा रहा है। रचना का आदि - विमल बिमलगिरि मंडणउ, रिसहेसर जिनराज, प्रणमूतेहना पाय हूँ, जिम सीझइ सविकाज । रचना काल संवत सोल गुहत्तरा, सुदि जेठ नवमी शुभ वासरइ, सिरि निलय दिनि-दिनि विजय राजइ, जेसलमेरु शोभावरइ । अन्त में गुरुपरंपरा बताई गई है और जिनचंद्रसूरि से लेकर महिमसुन्दर तक का क्रमवार नाम गिनाया गया है। जिस प्रकार तपागच्छीय प्रायः हीरविजयसूरिसे गुरुपरम्परा गिनाते हैं उसी प्रकार १७वीं शताब्दी के अधिकतर खरतरगच्छीय कवि अपनी गुरुपरम्परा जिनचंद्रसूरि से गिनाना प्रारम्भ करते हैं क्योंकि दोनों अकबर महान के प्रतिबोधक कहे जाते हैं। महिमामेरु -आप खरतरगच्छीय सुखनिधान के शिष्य थे। आपने सं० १६७३ में । नेमिराजुलफाग' की रचना ४ ढाल और ६५ गाथाओं में नागौर में किया। इसकी प्रति केसरियानाथ भंडार जोधपुर में सुरक्षित है। रचना का आदि और अन्त नमूने के तौर पर १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ खण्ड २, पृ० १५०७-०८ २. अगरचन्द नाहटा-परम्परा, पृ०७४ ३. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ९१० (प्रथम संस्करण) और भाग ३ पृ० ९६ (द्वितीय संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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