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महिम सिंह या मानकवि
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कवि ने अपना नाम मानसिंह, महिमासिंह, मनचंद और मान जगह-जगह लिखा है पर जैसा पहले कह चुके हैं कि ये मानकवि के नाम से ज्यादा जाने जाते थे ।
उत्तराध्ययन गीत (सं० १६७५ श्रावण वदि ८ रविवार) आदि
श्री जिनवर पद युगनमी, श्री सरसति गुरुपाय,
उत्तराध्ययन छत्तीस गुण, गाइसुं निरमल भाय ॥ इस रचना में कवि ने अपना नाम महिमासिंह दिया है, यथा
गुरुबंधव पंडितप्रवर कनकसिंह, मतिसिंह,
तिणि आग्रह कीधइ घणइ, भाषइ महिमा सिंह यह रचना कवि ने अपने गुरुभाई कनकसिंह एवं मतिसिंह के आग्रह पर किया । रचनाकाल
सोलह सय पचहत्तरइ श्रावणवदि रविवार,
आठम दिन अध्ययन गुण गामा सुविचार |
वच्छराज हंसराज चौपाई (५४९ कड़ी सं० १६७५ कोटडा ) यह कथा दान-पुण्य एवं धर्माचरण के दृष्टान्त रूप में वर्णित है । इसका रचनाकाल इस प्रकार कवि ने लिखा है
महिमसिंघ सुमति धरी, इम दान तणागुण गावइ रे, सोलह सय पंचहुतरे श्री कोटडा नगरि सुभावइ रे ।
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श्री देसाई ने जैन गुर्जर कविओ भाग ३ खंड २ पृ० १४२३ पर शिवनिधान शिष्य महिमासेन के नाम से जो वच्छराज हंसराज चौपइ. दिखाई है, वह यही रचना है । वहाँ रचनाकाल १७७५ अशुद्ध है, वह सं० १६७५ है जैसा ऊपर की पंक्तियों से प्रमाणित है । इसका आदि इस प्रकार है
श्री आदीसर जिन तणा पद पंकज पणमेवि,
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धर्म का महत्व -- धर्म प्रसादइ सुख लह्या हंसराज, बछराज,
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आदि करण जिन समरीयइ समरी सरसति देवि ।
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१. जैन गुर्जर कविओो भाग ३ खंड पृ० १४२३
घर तजि परदेस इफिर्या सीधा बंछिति काज
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