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________________ ३४६ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास कवि ने रचना के अन्त में स्वयं लिखा हैश्री खरतरगच्छ छाजइ श्री जिनसिंह सूरि राइज, ___ संवत सोलह सत्तरि, दीवाली दिनि गुणभरि । ओ सम्बन्ध रसाल सुणतां लीलविलास, श्री शिवनिधान गुरु सोस कहइ मुनि मान जगीस।' मेतार्य ऋषि चौपइ सं० १६७० । आदिविदुरलोक सुखदायिनी, सरसति समरि उल्हासि, मेतारिज रिषचरित सुभ कहिसु ग्रंथ प्रकासि । अन्त --संबन्ध मे सरस कहिउ, शिवनिधान गणि सींस, मुनि वदति मान सुप्रेम सुं सुखकारणि हो धरिमनहजगीस । रचनाकाल संवत सोलह सत्तरइ पुहकरण नयरि मझारि, सम्बन्ध अह कहिउ सही, अति सुन्दर हो निजमति अनुसारि । क्षुल्लक कुमार चौपइ-(साधु संबंध, गा० १४९ सं० १६७० के आसपास, पुष्करिणी) आदिश्री सद्गुरु पद जुग नमी, सरसति ध्यान धरेसु; क्षुल्लक कुमार सुसाधुना, गुण संग्रहण करेषु । गुणग्रहतां गुण पाइयइ, गुणि रंजइ गुणजाण, कमलि भमर आवइ चतुर, दादुरग्रहइन अजाण । गुणिजन संगत थइ निपुण, पावइ उत्तम ठाम, कुसुमसंग डोरो कंटक केतकि सिरि अभिराम । पहिलउ धर्म न संग्रहिउ, मात कहिइ गुरुवयण, नटुइवयणे जागीयइ, विकसे अंतरनयण । २ इसमें लेखक ने अपना नाम मानसिंह दिया है, यथासंबंध सरस कह्यउ शिवनिधान गुरु सीस, मानसिंह मुनि इम कहइ श्री पुष्करणी जगीस। १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ६९४-९८ तथा पृ० १५०७-०८ (प्रथम संस्करण) २. वही, भाग ३ पृ० १६०-१६४ (द्वितीय संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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