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________________ महिम सिंह या मानकवि ३४५ उद्दीपन विभाव के रूप में प्रकृति वर्णन का एक उदाहरण प्रस्तुत है. - मधुकर करई गुंजारव मार विकार वहंति, कोयल करई पटहूकड़ा टूकड़ा मेलवा कंत । मलयाचल श्री चल किउ पुलकिउ पवन प्रचंड, मदन महानृप दाझइ विरहिनि सिर उद्दंड ।' श्री हरीश शुक्ल ने जैन गुर्जर कविओ की हिन्दी कविता, पृष्ठ १२० पर यही विवरण महानन्दि गणि के सम्बन्ध में हू-ब-हू दिया है, अतएव कोई नवीन उल्लेखनीय सूचना नहीं है । पुष्कर महिम सिंह या मानकवि - आप खरतरगच्छीय उपाध्याय शिवनिधान के शिष्य थे । आप मानकवि के नाम से प्रसिद्ध थे । आपने सं० १६७० में 'कीर्तिधर सुकोशल प्रबन्ध' में लिखा । पुष्कर में ही आपने 'तारी ऋषि चौपइ' सं० १६७० और क्षुल्लककुमार चौपइ ( गा० १४९ ) की रचना की । सं० १६७५ में आपने 'हंसराज बच्छराज चौप' की रचना कोटड़ा में की। इन प्रमुख कृतियों के अलावा आपने झूठापुर में अरदास संबंध, उत्तराध्ययन छत्तीसी गीत, योग बावनी, उत्पत्ति नामा, शिक्षा छत्तीसी और रसमंजरी आदि पद्यबद्ध रचनायें भी की हैं । रममंजरी की भाषा स्वच्छ हिन्दी है, किन्तु अन्य रचनाओं की भाषा मरुगुर्जर या पुरानी हिन्दी है । आप पद्य के साथ-साथ अच्छे गद्य लेखक भी थे । गद्य में इन्होंने 'जीव विचार टब्बा' और 'कल्याणक मन्दिर बालावबोध' की रचना की है। रचनाओं का संक्षिप्त परिचय - कीर्तिधर सुकोशल प्रबन्ध का रचनाकाल श्री देसाई ने जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृष्ठ २१९ पर सं० १६१७ और भाग ३ में सं० १६७० बताया है । वस्तुतः रचनाकाल सं० १६७० ही उचित है क्योंकि यह रचना जिनसिंह के समय लिखी गई थी जिनका आचार्यपद स्थापन सं० १६७० और स्वर्गारोहण सं० १६७४ में हुआ था । १. डा० प्रेमसागर जैन-हिन्दी जैन भक्ति काव्य पृ० १४०-१४२ २. श्री अगर चन्द नाहटा - परम्परा, पृ० ८४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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