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________________ मल्लिदास ३४३ नहीं प्राप्त हैं। ये निःसन्देह उच्चकोटि के कवि हैं। भक्तिभावपूर्ण रचनायें मार्मिक एवं सरस हैं। इनमें हृदय की तल्लीनता है। इनके अलावा परंपरित ढंग की उपदेशपरक एवं धर्मप्रचार सम्बन्धी साहित्य तो इन्होंने लिखा ही है। मनोहरदास--ये विजयगच्छ के सन्त मल्लीदास के शिष्य थे। सं० १६०६ में इन्होंने 'यशोधर चरित्र' की रचना लसकर में की' अपनी गुरु परम्परान्तर्गत इन्होंने गुणसूरि >देवराज> मल्लिदास का नाम गिनाया है। कवि ने रचनाकाल बताते हुए लिखा है-- संवत सोल छहत्तरइ सार, श्रावण वदि षष्ठि गुरुवार, दशपुर नवफण दास पसाय, रच्यो चरित्र सवइ सुखदाय । इसमें हिंसा का त्याग और जीवदया का संदेश दिया गया है। कवि ने लिखा है ___हिंसा तजी दया आदरु, जिम भवसायर हेला तरु । इसकी प्रारम्भिक पंक्तियां इस प्रकार हैं-- श्री शांतीश्वर शांतिकर पास जिणंद दयाल, तस पदपंकज नमवि करि, चरितरचिससुविशाल । गुरुपरम्पराविजयगछि गुणसूरि सुरीद, जश दरसण हुइ परमाणंद । श्री मुनि देवराज सुखकंद, तास शिष्य मल्लिदास मुनींद । तस पदपंकज सेवक सदा, मनोहरदास कहइ मुनिमुदा।' मल्लिदास -आप विजयगच्छी ननो>विजयराज>भीमराज> पद्मदेवराज के शिष्य थे। आपने सं० १६१९ आसो शुक्ल ३, भृगुवार को जम्बूस्वामी रास (पञ्चमचरित्र) की रचना ३० ढालों में की। कवि ने गुरु परम्परा के अन्तर्गत उपरोक्त गुरुओं का नाम गिनाकर स्वयं को पद्मदेवराज के बजाय देवराज का शिष्य लिखा है। लगता है कि छन्द के आग्रह से या लघुता की सुविधा से 'पद्म' शब्द छोड़ १. श्री अगर चन्द नाहटा-परम्परा पृ० ९० २. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० १९९-२०० (द्वितीय संस्करण) ३. वही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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