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मरु-गुर्जर बम साहित्य का वृहद् इतिहास
उपाध्याय ध्यान तै उपाधि समहोत,
साध परिपूरण को सुमिरन है। पञ्च परमेष्ठी को नमस्कार मंत्रराज ध्यावे,
मनराज जोइ पावै निज धन है ।' इसमें भगवान के निर्विकार रूप, मोह कर्म की सामर्थ्य, भगवान नाम की महिमा आदि का विवेचन किया गया है
मन भोगी तन जोग लखि जोगी कहत जहान,
मन जोगी तन भोग तस जोगी जानत जान । इसके अलावा मनराम की अन्य कई रचनायें उपलब्ध हैं । रोगापहार स्तोत्र में रोगों को दूर करने के लिए भगवान जिनेन्द्र से प्रार्थना की गई है।
बत्तीसी (३४ पद्य) इसके सभी पद्य भगवान जिनेन्द्र की भक्ति से सम्बन्धित हैं।
बड़ा कक्का-इसमें अक्षरमाला के ५२ अक्षरों में से प्रत्येक पर एक-एक पद्य रचा गया है।
धर्म सहेली (२० पद्य) इसमें जैन धर्म की महिमा का उल्लेख किया गया है।
पद-इसमें भक्ति सम्बन्धी पद संकलित हैं जो सरस एवं भक्तिभाव से सराबोर हैं, यथा--
चेतन यो घर तेरो नाहीं, अथवा 'जिय ते नरमन यो ही खोयो ।' गुणाक्षर माला--इसमें भी जिनभक्ति सम्बन्धी पद्य है, यथा--
मन वच कर या जोडि के रे वंदी सारद माय रे, गुण आखिरमाला कहुं सुणौ चतुर सुख पाइ रे । परम पुरुष प्रणमो प्रथम रे, श्री गर सब आराधौ रे, ग्यान ध्यान मारिगि लहै, होइ सिधि सब साधो रे।
भाई नर भव पायो मिनख को ।२ इस प्रकार मनराम विलास के अलावा इनकी पांच-छह अन्य उल्लेखनीय रचनायें प्राप्त हैं किन्तु कवि के सम्बन्ध में अधिक विवरण १. प्रेमसागर जैन-हिन्दी जैन भक्ति काव्य पृ० १९४ २. वही,
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